लघुकथा

लघुकथा – तिरंगा

जब पाँच साल का था तब से तिरंगा लेकर दौड़ा करता था. जय हिन्द के नारों से पूरा घर गुँजा करता. मुझे ड़र लगता उसके नन्हें -नन्हें पाँव कहीं टकरा कर गिर न जाएँ. कभी कभी उसे पकड़ लेती. वो मुझे समझाने लगता. तू मेरे गिरने की फिकर न कर. ये तिरंगा नहीं झुकना चाहिए.

मुझे लगता शहीद सुबेदार बोल रहे हैं उसकी आवाज में. बाएँ हाथ से छोटे से तिरंगे को सँभालता और दाहिने हाथ से सलामी ठोकता रहता. थोड़ा बड़ा हुआ तो एनसीसी ज्वाइन कर ली. घर आकर भी परेड़ करता रहता. मैं डाँटती फर्श गंदा न कर. वो उल्टे मुझे समझा देता. आपको फर्श की पड़ी है. देश गंदा नहीं होना चाहिए माँ.

बारहवीं पास करने से बहुत पहले ही फौज ज्वाइन करने की तैयारियाँ शुरू कर दी थी उसने. बस रिजल्ट का इंतजार था वो भी पुरा हुआ. सच मानिये तो मैं नहीं चाहती थी कि मेरा इकलौता बेटा फौज में जाए. सुहाग तो फौज को दे ही चुकी थी, अब आँचल भी उसी रास्ते पर निकल रहा था. उसने मेरी सुनी ही कब थी. मुझे समझाबुझा कर गया कि जल्दी ही लौट आएगा और आया भी. ट्रेनिंग के एक साल बाद ही लौट आया पर आया भी तो कैसे, तिरंगे में लिपटकर.

शहीद सुबेदार के साथ उसकी भी तस्वीर लगा दी. वैसे तस्वीरों को रोज हीं साफ करती हूँ पर देश के महापर्व पर विशेष सफाई करती हूँ. मुझे फख्र होता है. मैं शहीद की विधवा और एक शहीद की माँ हूँ. पर थोड़ा दुख भी होता है. मैंने ये दो जानें और भारतवर्ष ने ऐसे कई सैनिक की जानें दुश्मनों से, किसी बाहर वालों से लड़ने में नही बल्कि अपने देश के अपने लोगों से लड़ने में गँवाईं. आज गणतंत्र दिवस की 68वीं वर्षगाँठ है. सभी देशवासियों को हार्दिक बधाई एवम शुभकामनाएं. झण्डा लहराइए, खुशियाँ मनाइए और मिठाइयाँ भी खाइए. पर कभी फुर्सत से जरूर सोचिएगा. जय हिन्द.
विशाल नारायण 

विशाल नारायण

नाम:- विशाल नारायण , पिता:- बीरेन्द्र कुमार सिंह, ग्राम:- सखुआँ, जिला:- रोहतास, बिहार सम्प्रती गोवा में पदस्थापित. विशाल नारायण वास्को गोवा. 9561266303