राजनीति

पांच प्रांतों के चुनाव परिणाम सभी दलों के लिए सबक

जिन विधानसभा चुनावों को 2019 का सेमीफाइनल माना जा रहा था, उन सभी पांच राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ,़ राजस्थान, मिजोरम और तेलंगाना के चुनाव परिणाम सामने आ गये हैं, जिसमें कांग्रेस हिंदी भाषी दो राज्यों राजस्थान व छत्तीसगढ़ में आसानी से सरकार बना रही है। लेकिन मध्य प्रदेश में उसको बीजेपी से बहुत अधिक कांटे की टक्कर लेनी पड़ रही है। भारतीय जनता पार्टी के नजरिये से केवल छत्तीसगढ़ ही एकमात्र ऐसा राज्य रहा है जहां राहुल की हवा सही तरीके से चल पायी है। जबकि राजस्थान व मध्यप्रदेश में कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए सहयोगी दलों व विधायकों का सहारा लेना पड़ रहा है। आज देश के मीडिया व सोशल मीडिया में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को किसानों, युवाओं और छोटे व्यापारियों का नायक बनाकर पेश किया जा रहा है जो कि एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। कहा जाता है कि खेल में हार-हार होती है और जीत-जीत होती है। एक प्रकार से जो जीता वही सिकंदर।
ये चुनाव परिणाम कई मायने में काफी दिलचस्प व रोचक रहे हैं। सबसे अधिक मध्य प्रदेश के चुनाव परिणाम रोचक रहे हैं। वहां पर अंत समय तक तय नहीं हो पाया है कि सरकार किसकी बन रही है। भले ही कांग्रेस बसपा के सहयोग से सरकार बनाने का दावा पेश कर ही हो, लेकिन बीजेपी भी किसी कीमत पर पीछे नहीं हट रही है। राजस्थान में जहां वसुंधरा राजे सिंधिया को स्वयं अपनी सीट से हारा हुआ दिखा रहे थे, उन विपरीत हालातों में भी वहां पर बीजेपी ने काफी तगड़ी लड़ाई लड़ी है और एक बारगी कांग्रेस वहां भी पीछे हटती दिखायी पड़ रही थीं। पिछली बार बीजेपी ने 163 सीटें जीती थी और इस बार वह 86 सीटों तक आगे आ गयी और 73 सीटें जीतने में कामयाब रही। जबकि कांग्रेस 99 पर रह गयी और सरकार बनाने के लिए एक बार फिर निर्दलियों का सहारा लेना पड़ रहा है। चुनावों की समीक्षा तो लगातार होती रहेगी ओर तब तक लोकसभा चुनाव भी आ जायेंगे।
लेकिन यह एक कटु सत्य है कि राहुल गांधी कांग्रेस के नायक तो बन गये हैं, लेकिन वह देश के नेता बनकर उभर रहे हैं यह भवियवाणी करना अभी बहुत जल्दबाजी है। जब 2019 के लोकसभा चुनाव चल रहे होंगे, तब तक इन नयी कांग्रेस सरकारों का पांच महीने का कार्यकाल बीत चुका होगा और कांग्रेस के वादों का क्या हो रहा है तब तक जनता यह भी देख चुकी होगी। अब आज देश की जनता ऐसे सभी राजनैतिक दलों से उनकी ओर से किये जा रहे वादों की त्वरित रिकवरी मांग रही है। यदि राहुल गांधी की सरकारें किसानों का दस दिन में कर्ज माफ नहीं करती हैं और उनको फसलों का वाजिब दाम दिलाने में असमर्थ रहती हैं, उस समय कांग्रेस के लिए लोकसभा चुनवों में भी अपना इस प्रकार का प्रदर्शन दोहराना आसान नहीं रहेगा। कांग्रेस सरकारों को समानता के आधार पर अपना काम करके दिखाना होगा। अभी राजस्थान में कांग्रेस अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच साफ रूप से बंटी दिखायी पड़ रही है, जिसका असर भी लोकसभा चुनावों में अवश्य दिखायी पडे़गा।
आज सभी राजनैतिक विश्लेषक मोदी लहर-मोदी लहर का हल्ला बोल रहे हैं और दावा कर रहे हैं कि मोदी लहर थम गयी है। यह कहना कुछ हद तक स्वाभाविक भी है लेकिन यह मोदी लहर और उनके द्वारा की गयी रैलियों का ही असर है कि आज बीजेपी ने इतनी तगड़ी लड़ाई लड़ी है वह भी बेहद विपरीत परिस्थितियों में। सबसे खास बात यह है कि बीजेपी शासित राज्यों में मुख्यमंत्री पद के दावेदार सभी लोकप्रिय चेहरे शिवराज, रमन और वसुधंरा राजे अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे, जबकि मिजोरम में तो कांग्रेस के खिलाफ ऐसी सुनामी आ गयी कि उसके मुख्यमंत्री ललथनहवला अपनी दोनों सीटों पर हार गये। जबकि तेलंगाना में कांग्रेस और दलबदलू चंद्रबाबू नायडू को वहां की जनता ने उनके महागठबंधन की हैसियत दिखा दी है। साथ ही वहा की जनता ने यह संकेत भी दे दिया है कि अपने निहित स्वार्थों के लाभ के लिए जिस प्रकार से नरेंद्र मोदी का साथ छोडा है, अब वह उसके गंभीर परिणाम अपने राज्य में आने वाले दिनों में भुगतने के लिए तैयार रहें।
आज सभी जगह केवल भाजपा की पराजय की चर्चा तो हो रही है लेकिन उनके दूरगामी और गहरे निहितार्थो को नजरअंदाज किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ जो कि सर्वाधिक नक्सल प्रभावित राज्य है वहां पर बीजेपी ने 15 साल तक शासन किया। रमन सिंह की सरकार ने केंद्र सरकार के साथ मिलकर नसलवाद के खिलाफ एक बड़ा अभियान चलाया और देशविरोधी गतिविधियों में संलिप्त, धर्मांतरण करा रहे चर्च व मदरसों के खिलाफ बहुत पैनी निगाह रखते हूए उन पर कड़ी कार्यवाही की थीं और कुछ होने जा रही थीं, जिन पर कुछ अवश्य असर पड़ेगा। कांग्रेसी नेता राज बब्बर नक्सलियों को क्रांतिकारी कहकर आये थे, तो क्या इस बार वहां पर नक्सलवादियों ने भी कांग्रेस के पक्ष में बल्लेबाजी कर दी है। अब यदि वहां पर नक्सलवादी किसी बहुत बड़ी वारदात को अंजाम देते हैं, तब कांग्रेस सरकार का क्या रूख होगा यह भी देखने वाली बात होगी।
राजस्थान से भी कुछ बातें बीजेपी के बागी उम्मीदवारों के लिए सबक हैं। राजस्थान में बीजेपी से बागी तेवर अपनाने वाले और अपना राजनैतिक दल बनाकर चुनाव लड़ने वाले घनश्याम तिवाड़ी बुरी तरह से चुनाव हार गये हैं, जिससे साफ हो गया है कि जिन लोगों ने बीजेपी जैसे संगठन का साथ छोड़ा वह न घर का रहा और न घाट का। यह अवश्य हुआ है कि उन्होंने राज्य में बीजेपी को सत्ता से बाहर कर दिया है। अगर बीजेपी का चुनाव प्रबंधन तिवाड़ी को कुछ सीमा तक मना लेता, तो कुछ सीटों के नुकसान से बचा जा सकता था। बीजेपी ने राज्य में ताकतवर बागियों को मनाने की कतई कोशिश नहीं की, जिसके कारण भी कुछ सीटों पर बहुत मामूली अंतर से पराजय हुई है। राज्य में जनता की नाराजगी केवल मुख्यमंत्री वसुधरा राजे से थी यह कहना भी पूरी तरह से गलत है। इस बार भाजपा और कांग्रेस दोनों में ही गुटबाजी थी और बागी उम्मीदवार भी भरपूर थे। बीजेपी के संगठन में काफी गहरे मतभेद थे। केंद्रीय नेतृत्व ने युवा के दौर में एक बहुत ही बुजुर्ग को अंतिम समय में नेता बनाकर भेजा, जिसके कारण युवाओं को और अधिक निराशा हो गयी थीं। यदि बीजेपी केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर सरीखे लोकप्रिय युवा नेतृत्व को आगे लाकर चुनाव लड़ती तब युवाओं में बीजेपी के पक्ष में कुछ और झुकाव आ सकता था।
यह चुनाव अब कांग्रेस की भविष्य की राजनीति तो आसान कर रहे हैं। वहीं भाजपा व एनडीए की राह में कांटे बिछ गये हैं। पहली बार मोदी व अमित शाह की जोड़ी को करारा झटका लगा है। यह सेहत के लिए जरूरी भी हो गया था।
जब केंद्र में मोदी सरकार का पूर्ण बहुमत के साथ गठन हुआ था, तब हिंदू समाज के लोगों को लगा था कि मोदी जी अयोध्या में भव्य श्रीराम जी के मंदिर निर्माण का रास्ता पूरे मनोयोग से साफ करायेंगे। लेकिन न तो पीएमओ स्तर पर, न ही गृह मंत्रालय के स्तर पर अयोध्या विवाद को शांत करने की कोई गंभीर पहल दिखाई पड़ी। लोगों का कहना है कि सरकार व कार्यपालिका बहुत अधिक ताकतवर होती है। अब सामान्य जनता भी यह कहने लग गयी है कि जब नोटबंदी हो सकती है, जीएसटी लागू हो सकती है और पिछडे वर्ग को खुश करने के लिए सरकार बिना किसी संकोच के आनन-फानन में बिल ला सकती है और सुप्रीम कोर्ट को नीचा दिखा सकती है, तब राम मंदिर निर्माण के लिए संसद का विशेष अधिवेशन क्यों नहीं बुलाया जा सकता। महाराष्ट्र सरकार ने मराठों को खुश करने के लिए मराठा आरक्षण दे दिया। वहीं खबर है कि आगामी लोकसभा चुनावों में गुजरात में पाटीदारों व पटेल समुदाय को भी आरक्षण दिया जा सकता है।
जब यह सब कुछ हो सकता है तो फिर श्रीराम मंदिर के लिए सुप्रीम कोर्ट का हवाला बार-बार क्यों दिया जा रहा है। अब सुप्रीम कोर्ट में यह मामला प्राथमिकता में नहीं है। कार्यपालिका के लिए समय तेजी से निकल रहा है। हिंदू जनमानस का भरोसा काफी तेजी से मोदी सरकार से सरक रहा है। कालेधन के खिलाफ लड़ाई में भी कोई विशेष प्रगति नहीं हुयी है। पीएम नरेंद्र मोदी जी ने 2-जी से लेकर कोयला घोटाले तक और आतंकवाद के क्षेत्र दाऊद इब्राहीम जैसे करीब 40 से अधिक मोस्ट वंाटेड आतंकवादी व घोटालेबाज पकड़ से बहुत दूर है। जनमानस को मोदी जी से उम्मीद थी कि कम से कम उनके नेतृत्व में ऐसे भारत विरोधियों का पाक के अंदर घुसकर सफाया किया जायेगा लेकिन केवल एक सर्जिकल स्ट्राइक होकर रह गयी। केवल एक सर्जिकल स्ट्राइक के सहारे बार-बार चुनाव नहीं जीते जा सकते। मनमोहन सरकार की तरह वर्तमान सरकार भी आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई की अपील पाकिस्तान से ही करती दिखलायी पड़ रही है।
अगले लोकसभा चुनावों से पहले भाजपा कार्यकर्ताओं का जो मनोबल काफी तेजी से गिर रहा है उस मनोबल को वापस पटरी पर लाने के लिए केंद्र सरकार, बीजेपी शासित राज्य सरकारों व अमित शाह जी को संगठन स्तर पर तुरंत व्यापक स्तर पर कार्यवाही ही नहीं सर्जिकल स्ट्राइक जैसे कदम उठाने ही होंगे। जिसमें राम मंदिर से से लेकर किसानों की कर्जमाफी व फसलों के उचित दामों जैसे कदम भाजपा व सरकार को उठाने ही नहीं पड़ेंगे, नहीं तो अब 2014 जैसा बहुमत तो भाजपा का नहीं आ रहा है। भाजपा के लिए सबसे बड़ी आवश्यकता यह है कि वह अब वसंुधरा राजे, रमन सिंह और शिवराज सिंह को केंद्रीय भूमिका में उतारे और राज्यों की कमान स्थानीय स्तर पर लोकप्रिय और तेज तर्रार युवा चेहरों के हवाले करे। इन राज्यों की जनता लगातार इन्हीं चेहरों को बार-बार देखकर ऊब चुकी थीं। विधानसभा चुनावों में बीजेपी की पराजय व कांग्रेस जीत तथा उसके भविष्य के असर पर अभी बहुत ग्रंथ लिखे जायेंगे तथा अनुमान लगाये जायेंगे।
लेकिन यह बात सही है कि सबसे बड़ी चुनौती अब केवल अजेय समझी जाने वाली मोदी व शाह की जोड़ी के सामने आकर खड़ी हो गयी है। शिवसेना का कहना है कि बीजेपी ने अपने दोस्तों व सहयोगियों के साथ बैठकर कभी किसी प्रकार की चर्चा नहीं की। यह बात भी सही है। वहीं विश्व हिंदू परिषद का कहना है कि विधानसभा चुनावों में भाजपा की पराजय रामभक्तों का क्षणिक गुस्सा है यह भी सही है। जबकि कुछ का कहना है कि विधानसभा चुनावों में भाजपा की पराजय का कारण विगत चार साल में कांग्रेस की ओर से खूब जमकर मुस्लिम तुष्टकीरण किया गया और पाकिस्तान की जय बोली गयी, लेकिन पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने परंपरागत कोर वोटर के लिए कुछ नहीं किया, निराशा आना स्वाभाविक है।
जनता का कहना है कि विकास तो होता रहता है। हमने मोदी जी को अयोध्या में मंदिर बनवानें के लिए और किसानों की कर्जमाफी के लिए भेजा था। अभी समय है कुछ कर लीजिये जनता के लिए महा विस्फोट, सारी नाराजगी दूर हो जायेगी। यह भी सही है कि यदि राहुल गांधी कही पीएम बन गये तो फि बीजेपी की वापसी अगले दस साल तक नहीं हो पायेगी। विगत चार साल में यह बात देखने में आयी है कि पीएम नरेंद्र मोदी ने विदेशों में नेतओं के साथ तो सामूहिक फोटो खिचवायें लेकिन अपने सहयोगी दलों के नेताओं के साथ सामूहिक चर्चा नहीं की है और न ही उनके साथ फोटो सेशन करवाया है, जिसका मलाल सहयोगी दलों को है। यह सब अब ठीक करने का समय है।
— मृत्युंजय दीक्षित