बाल कविताबाल साहित्य

जंगल की आग


एक दिन आग लगी जंगल में,
भगदड़ मच गई यारों।
कोई यहाँ कोई वहाँ था भागा,
आफत आ गई प्यारों।

एक चिड़िया भर लाई,
चोंच में बड़ा ज़रा सा पानी।
हाथी भालू हंसने लगे,
हुई शेर को भी हैरानी।

आग बड़ी है जंगल की
क्या इस पानी से होगा।
चिड़िया रानी भाग चलो,
अब हमसे कुछ न होगा।

इतने से पानी से कैसे,
तुम ये आग बुझाओगी।
मेहनत सब बेकार रहेगी,
जल्दी तुम थक जाओगी।

चिड़िया बोली संग मेरे
हिम्मत मेहनत रहती हैं।
कोशिश कब बेकार हुई?
ये मेरी माँ कहती है।

घर मेरा जंगल मेरा,
ऐसे न जाने दूँगी।
आग हो या तूफ़ान भयंकर,
सबसे मैं लड़ लूंगी।

आने वाले समय में जब
ये दिन सब याद करेंगे।
एक नन्ही चिड़िया की
कोशिश पर भी बात करेंगे

ये सुन कछुआ लिए बाल्टी,
दौड़ा पानी लाने को।
चीता बन्दर भालू भागे,
बढ़ती आग बुझाने को।

आग बुझा कर जानवरों ने,
चमत्कार दिखलाया।
सबने मिलजुल कर अपने,
जंगल को आज बचाया।

*डॉ. मीनाक्षी शर्मा

सहायक अध्यापिका जन्म तिथि- 11/07/1975 साहिबाबाद ग़ाज़ियाबाद फोन नं -9716006178 विधा- कविता,गीत, ग़ज़लें, बाल कथा, लघुकथा