कविता

चाहत

सतगुरु तुझको पाकर हमने
गूढ़ विषय को जाना हमने।
लोभ मोह लालच के घेरे
डाल रहे थे निरंतर फेरे।
निष्काम कर्म को जाना हमने
अपना अब तुझे माना हमने।
कर्मयोगी बन जाऊँ सदगुरु
ऐसे भाव जगा देना।
क्रोध मोह ईर्ष्या को डस कर
तृप्ति का पाढ़ पढ़ा देना।
अपने बालक से बढ़कर
औरों पर प्यार लुटाऊँ मैं
जगत पिता हे जगन्नाथ
सबका प्यार अब पाऊँ मैं।
सिंचित धन की चाह नहीं हो
परमारथ का मार्ग दिखा देना
औरों के काम आये अब जीवन
ऐसे भाव जगा देना।
सब बिसरायें मुझे प्रभु पर
तुम नैया पार लगा देना।
साँस साँस में एक ही आस
माँ की छवि नयनों में हरदम
स्वीकार करो प्रभु भोर नमन।

आरती राय

*आरती राय

शैक्षणिक योग्यता--गृहणी जन्मतिथि - 11दिसंबर लेखन की विधाएँ - लघुकथा, कहानियाँ ,कवितायें प्रकाशित पुस्तकें - लघुत्तम महत्तम...लघुकथा संकलन . प्रकाशित दर्पण कथा संग्रह पुरस्कार/सम्मान - आकाशवाणी दरभंगा से कहानी का प्रसारण डाक का सम्पूर्ण पता - आरती राय कृष्णा पूरी .बरहेता रोड . लहेरियासराय जेल के पास जिला ...दरभंगा बिहार . Mo-9430350863 . ईमेल - arti.roy1112@gmail.com