लघुकथा

स्वर्णिम स्वप्न

सुखदा के लिए उपप्रधानाचार्या जैसे मान-सम्मान और शानदार वेतन वाले पद से इस्तीफा देकर खेती करने लग जाना समाज के लिए उपयोगी भी था और स्वयं के लिए आत्मसंतुष्टिकारक भी.

जब तक वह अध्यापिका थी, तब तक तो सब ठीक चल रहा था, वह छात्राओं को नवाचार के बारे में बताते-बताते स्वयं भी नवाचारों से जुड़ी रहती थी. नित नए नवाचारों के इसी प्रयास ने उसे और उसकी छात्राओं को अनेक पुरस्कार भी दिलवाए थे और सम्मान भी. अब वह उपप्रधानाचर्या की कुर्सी पर बैठकर इन नवाचारों से दूर हो गई थी.

”मैंने कॉमर्स पढ़ाते-पढ़ाते न जाने कितनी बार छात्राओं को किसानों को गांव से शहर की ओर पलायन करने और अपनी जड़ों की ओर लौटने को प्रेरित किया था, लेकिन व्यावहारिक रूप में मैं समाज को क्या दे सकी?” सुखदा अक्सर सोचती थी.

इसी सोच ने उससे एक दिन उपप्रधानाचर्या के पद से इस्तीफा दिलवा दिया था.

अब वह शहर में रहते हुए भी रोज आधा घंटा गाड़ी से गांव पहुंचती है और अकेले ही अपनी खेती को संभालती है.

”यही है असली नवाचार,” सुखदा की यह बात सुख देने वाली है- ”खेती के बारें में सालों-साल पढ़ाने के बावजूद मुझे पहले-पहल तो यह भी पता नहीं चलता था, कि ये पौधे हैं या खर-पतवार! कभी सूखे की मार, कभी आने वाली बाढ़ भी महीनों चिंतित रखती है, फिर भी देश के विकास में एक कदम आगे बढ़ाना, अपने खेत की तुरई और भिंडी खुद खाना और आस-पास के लोगों को खिलाकर खुश होना और नवाचार का प्रायोगिक रूप मन को सुकून देता है.”

सुखदा का यह सुकून ही शायद देश को समृद्ध बनाने का स्वर्णिम स्वप्न सच कर सके!

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “स्वर्णिम स्वप्न

  • लीला तिवानी

    पुरुषों और नवयुवकों के बारे में तो अक्सर देश-विदेश में शानदार नौकरी छोड़कर खेती-किसानी करने के समाचार आते रहते हैं. सुखदा का साहस देखिए- महिला होते हुए भी उसने उपप्रधानाचार्या की कुर्सी वाली सानदार नौकरी छोड़कर खेती-किसानी शुरु की. सुखदा हमारी पड़ोसिन है. वह हमारी सोसाइटी में ही हमारे से ऊपर वाली मंजिल पर रहती है.

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