कविता

#समर्पिता#

#समर्पिता#
#कविता_सिंह#
सुनो!
स्त्री रहस्य नहीं
समर्पण है
उसे सुलझाने की नहीं
स्वीकारने की
अंगीकार करने की सोचो
वो समर्पिता है
हृदय से सोचने वाली
हृदयजीवी;
निर्भय उसके हृदय में उतरो
निर्द्वन्द्व उसकी आत्मा में बसो
फिर भींगते रहो आजन्म
प्रेम, स्नेह और आत्मीयता
की बरसात में
वो खुद को मिटाकर
खुद में जीती है तुम्हें,
देखना कभी गौर से
धीरे-धीरे वो तुम हो जाती है
जिस दिन देखो
उसमें अपना ही अक्स
उस दिन, हाँ!
उस दिन
वो अर्धनारीश्वर बन
‘तुम्हें’ कर देती है
परिपूर्ण… सम्पूर्ण!!

कविता सिंह

पति - श्री योगेश सिंह माता - श्रीमति कलावती सिंह पिता - श्री शैलेन्द्र सिंह जन्मतिथि - 2 जुलाई शिक्षा - एम. ए. हिंदी एवं राजनीति विज्ञान, बी. एड. व्यवसाय - डायरेक्टर ( समीक्षा कोचिंग) अभिरूचि - शिक्षण, लेखन एव समाज सेवा संयोजन - बनारसिया mail id : samikshacoaching@gmail.com