गीतिका/ग़ज़ल

समस्त नई पीढ़ी को समर्पित

ये दिन तुम पर भी आयेंगे अपनी पारी तुम समझो

वृद्ध पिता की बूढी माँ की जिम्मेदारी   तुम समझो

तुम्हे खिलाया गोद बिठा कर काँधे दुनिया दिखलाई

क्यों अब हम तुम पर हैं भारी  क्या दुश्वारी  तुम समझो

सारा जीवन देते आये कभी न झोली फैलाई

क्यों चाहिए हमको अपनापन ये खुद्दारी  तुम समझो

पथराई सूनी आँखों में बीते कल की यादें है

सूख गये क्यों सारे  आंसू ये लाचारी तुम समझो

ईंट की दीवारो से बनते महल दुमहले और  भवन

पर कैसे घर बन पाता है राज अटारी  तुम समझो

बेटी विदा हुई  जाने कबअब तक  सबसे जुडी हुई

घर जमाई क्यों बनते बेटे ये बीमारी  तुम समझो

पिता से बढ़ कर धरम पिता है माँ से बढ़ कर सास हुई

पानी हुआ खून से गाढ़ा कलम कुठारी तुम समझो

जहाँ सभी को जाना इक  दिन उसी डगर पर हम भी हैं

धीरे धीरे चुपके चुपके है तैयारी  तुम समझो

— मनोज श्रीवास्तव लखनऊ

*डॉ. मनोज श्रीवास्तव

1 -डॉ मनोज श्रीवास्तव (विद्यावाचस्पति) ex( pb no 2761 ) वरिष्ठ प्रबन्धक प्रशिक्षण ( 11 अप्रैल 1978 से 31 दिसम्बर 2010 ) 2 - जन्म तिथि 1 जनवरी 1951 3 - जन्म स्थान - ननिहाल में (म प्र ) जबलपुर पालन पोषण -शिक्षा-दीक्षा लखनऊ उप्र में ( भारतीय बालिका विद्यालय लखनऊ_नेशनल इंटर कालेजलखनऊ -हीवेट पॉलिटेक्निक लखनऊ स्नातक- IIIE मुंबईसे औद्योगिक अभियंत्रण में 4 -प्रकाशित साहित्य - (1 ) महज़ सुकरात का डर है (गज़ल संग्रह ) 2001 एक नुक्ता -पदम श्री स्व के पी सक्सेना जी (2 ) जयघोष ( ओजस्वी रचनाए ) 2004 आशीर्वचन पद्म विभूषण श्री गोपाल दास नीरज जी (3 ) दुनिया एक मुसाफिर खाना (अध्यात्म )2013 आशीर्वचन पद्म विभूषण श्री गोपाल दास नीरज जी avm DR KUMAR VISHVAS 5 -पूर्व में प्राप्त पुरस्कार / सम्मान आदि का विवरण - 1 दिव्य नर्मदा अलकरण अभियान -बेलगाम कर्नाटक 2003 - 2 कादंबरी पुरस्कार (स्व पं भवानी प्रसाद तिवारी ) जबलपुर 2012 6 - अन्य साहित्यिक उपलब्धियाँ उत्तर प्रदेश अंडमन -निकोबार पंजाब बिहार मप्र छत्तीस गढ़ ओडिसा दिल्ली आदि स्थानो में कवि सम्मेलनों में काव्यात्मक संचालन तथा आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रो एव दूर दर्शन में काव्यपाठ सरिता मुक्ता साप्ताहिक हिंदुस्तान पाञ्चजन्य उर्दू साहित्य आदि में प्रकाशित 7 - सम्पर्क सूत्र (दूरभाष सहित _ 0255 -2308055 mo no -09452063024 /08795988569 email - manoj .oj kavi @gmail . com