लघुकथा

मौज का दरिया

”सर, 95 साल की उम्र में भी आप इतने सक्रिय और चुस्त-दुरुस्त कैसे रह पाए हैं?” क्रिसमस की छुट्टियां शुरु होने से पहले ऑस्ट्रेलिया में 75 साल की सामाजिक सेवा-कक्षा की शिष्या प्रियंका ने डेविड सर से पूछा.

”मौजां-ही-मौजां” डेविड सर ने फरमाया.

”वो कैसे सर!” प्रियंका का हैरान रहना स्वाभाविक था.

”आपको पता है न कि ऑस्ट्रेलिया में सेवानिवृत्ति की कोई उम्र नहीं है, 70 साल तक तो मैंने स्वेच्छा से नौकरी की. हर ऑस्ट्रेलिया-वासी की तरह मैं नौकरी सिर्फ हफ्ते में 5 दिन करता था, बाकी दो दिन मौज-मस्ती, पर सिर्फ देर तक सोकर नहीं. शनिवार-रविवार को मैं सुबह साइकिलिंग पर जाता था, दोपहर को टेनिस खेलने और शाम को क्लब-कैसीनो, यानी फुल मस्ती!” प्रियंका की हैरानी बढ़ती जा रही थी.

”कभी दो दिन से ज्यादा की छुट्टी होती थी, तो हम अपनी कार के पीछे अपनी बोट लगाकर बोटिंग को निकल जाते थे. वापिस आते तो पूरे तरोताजा.” ऐसा भी होता है! प्रियंका सोच रही थी. हमारी छुट्टियों का टाइम तो किचन में ही निकल जाता है.

”70 साल का होने पर मैं कंपनी में सबसे ऊंची पोस्ट पर पहुंच गया था, तब मैंने सेवामुक्ति लेकर लॉलीपॉप लेडी बनने का मन बनाया.” सर और लॉलीपॉप लेडी! प्रियंका हैरान थी.

”लॉलीपॉप लेडी! वो कैसे सर?”

”बच्चों के स्कूल खुलने और बंद होने के आधा घंटा पहले और आधा घंटा बाद में किसी समाज-सेवक को स्कूल के छात्रों को सुरक्षित रूप से स्कूल की सड़क पार कराने के लिए ट्रैफिक को नियंत्रित करना होता है. उस समाज-सेवक को लॉलीपॉप लेडी कहते हैं, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष.” डेविड सर श्रोता की प्रतिक्रिया देख रहे थे.

”हरे रंग का चमकीला जैकेट पहने लॉलीपॉप लेडी यानी स्वैच्छिक-अवैतनिक-सम्मानित सुरक्षा-कर्मचारी!. सभी देशों के छात्र उसे अपने-अपने देश के नियमानुसार अभिवादन करते जाते हैं. उस समय लॉलीपॉप लेडी किसी बच्चे से कम नहीं होती. एक हाथ में लॉलीपॉप लेडी-ध्वज होता है और दूसरा हाथ गाड़ियां रोकने और जाने का इशारा देने को तैयार. उसके मन में बहता है छोटे भगवानों की सेवा की मौज का दरिया.”

”सर, आपको उसमें मजा आता था?”

”हमने हर काम में मजा लिया है, चाहे वह नौकरी हो या लॉलीपॉप लेडी का काम और अब समाज-सेवक के रूप में यहां काम करना, हां सैर, व्यायाम और टेनिस मैंने अब भी जारी रखा है.”

”हमारे मन में मौज का दरिया बहता है, बस मौज की लहर बनने का हुनर आना चाहिए.” सत्संग में सुना एक कथन प्रियंका को याद आ गया था.

अपने मन को मौज का दरिया बनाने के लिए प्रियंका ने खुद को तैयार कर लिया.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

3 thoughts on “मौज का दरिया

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अछि लघु कथा लीला बहन . बेकार बैठे रहने से अच्छा है किसी न किसी काम में मसरूफ रहना , फिर चाहे लौली पौप लेडी का काम ही क्यों न हो . इस से बच्चों से भी दोस्ती हो जाती है जिस से मन खुश रहता है और वक्त काटना भी आसान हो जाता है .

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, रचना पसंद करने, सार्थक व प्रोत्साहक प्रतिक्रिया करके उत्साहवर्द्धन के लिए आपका हार्दिक अभिनंदन. आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. बेकार बैठे रहने से अच्छा है किसी-न-किसी काम में मसरूफ रहना, फिर चाहे लॉलीपॉप लेडी का काम ही क्यों न हो. इससे बच्चों से भी दोस्ती हो जाती है, जिससे मन खुश रहता है और जीवन मौज का दरिया बनकर बहता जाता है. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.

  • लीला तिवानी

    इक मौज का दरिया है और बहते जाना है

    मौज का दरिया हमारे अंदर निरंतर प्रवाहित है, इसमें नहाते जाना है.

    जिंदगी उतनी ही अच्छी होयी है, जितना हमने उसे बनाया है.

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