लघुकथा

तपस्या (लघुकथा)

21 दिन के बाद!
21 दिन के बाद, कोरोना का लगभग खात्मा हो गया था, दुकानें भी सब खुल गई थीं, सिगरेट का खोखा भी खुल गया था.

ऑफिस जाते समय मानव ने सिगरेट के खोखे की तरफ देखा भी नहीं, आगे बढ़ गया. ”बाबू सिगरेट तो लेते जाओ!” खोखे के मालिक रतन ने आवाज दी.

”मेरी मानो तो तुम भी सिगरेट बेचना छोड़कर सबको सिगरेट से सेहत के नुकसानों के बारे में जागरुकता का प्रसार करना शुरु कर दो. बड़ी मुश्किल से सिगरेट की लत छूट पाई है और सेहत भी सुधर गई है.” कहकर मानव आगे बढ़ गया.

21 दिन पहले की उसकी यादों का पिटारा खुल गया था.

”उठो लाल अब आंखें खोलो”. अकेलेपन के अहसास से निराश, उदास और अवसादग्रस्त मानव आवाज सुनकर चौंक गया था, पर बोलने वाला उसे दिखाई नहीं दिया.

”उठा भी हुआ हूं और आंखें भी खुली हुई हैं, मगर इस अकेलेपन का क्या करूं, जो लॉकडाउन और सोशल डिस्टैंसिंग के चलते 21 दिन तक मुझे घेरे रहेगा.कोई हल हो तो बताओ!”

”तुम्हारी समस्या है कि तुम्हें कश लगाने के लिए सिगरेट नहीं मिल रही है. लॉकडाउन के कारण खाने-पीने की जरूरी चीजें तो मिल रही हैं और सिगरेट कोई जरूरी चीज तो नहीं है! हर समस्या का एक हल होता है और इस एक समस्या के हल तो तुम्हारे पास एक नहीं अनेक हैं.” आवाज में उत्साह की खनक थी.

”वो कैसे?” मानव चकित हो गया था.

”अरे भाई, बचपन में तुम्हें पिताजी ने बार-बार समझाया था, कि सिर दर्द का कोई अस्तित्व है ही नहीं, बस तुम काम बदलो और सिरदर्द गायब! इसी तरह तुम किसी नए काम में मन लगा लो, नए-नए तरीके निकालो, तो सिगरेट की तलब ही नहीं होगी. तुम तो पढ़े-लिखे हो और भलीभांति जानते हो कि सिगरेट स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और कोरोना वायरस की पक्की सखी-सहेली! सिगरेट से अस्थमा और अस्थमा से कोरोना!

उठो लाल,
बनो किसी जरूरतमंद की ढाल,
दिखाओ अपने किसी नए हुनर का कमाल!” आवाज कोई रास्ता दिखाने पर आमादा थी.

”अब अकेलेपन में क्या काम होगा? इकॉनामी डूब रही है, नौकरियां जा रही हैं, मुसीबत-पर-मुसीबत आ रही है, किसी से मिलना-जुलना भी बंद हो गया, अब क्या नया करूं?” कुछ नया करने का यह हल मानव के लिए उलझन बन गया था.

”पार्टी करो.” आवाज की आवाज पार्टी के उत्साह से चहक रही थी.

”पार्टी! और वह भी लॉकडाउन और सोशल डिस्टैंसिंग के चलते!” आवाज उसे भरमाती-सी लग रही थी. ”शायद शर्म के मारे वह सामने नहीं आ रही.” उसने मन में सोचा.

”अमेरिका के मशहूर डीजे डी-नाइस ने एक इंस्टाग्राम लाइव सोशल डिस्टेंसिंग पार्टी होस्ट की, जिसके लिए 10 लाख से अधिक लोगों ने उन्हें इंस्टा पर ज्वाइन किया और पार्टी का लुत्फ उठाया.”आवाज मानो नाचने-सी लगी थी.

”यह तो मैं कर सकता हूं, आइ.टी इंजिनियर जो हूं. ट्विटर पर अंत्याक्षरी भी खेल सकता हूं, अरे मैं तो इससे भी अधिक बहुत कुछ कर सकता हूं! मेरे बहुत-से मित्र सिगरेट नहीं मिलने से परेशान होंगे, उनको समझाने के लिए तो मैं कुछ कर ही सकता हूं न! शायद यह दैवीय आवाज मेरी और मेरे मित्रों की सिगरेट की लत छुड़वाना चाहती है, जिसे मैं बहुत समय से चाहते हुए भी नहीं छोड़ पा रहा हूं.” शायद मानव उठ भी गया था और उसने आंखें भी खोल ली थीं.

”अस्थमा बीमारी से ग्रसित होने वाले लोगों के लिए कोरोना वायरस काफी जोखिम भरा साबित हो सकता है. इसलिए ,
सिगरेट की लत छोड़ो,
स्वास्थ्य से नाता जोड़ो.” मानव ने वाट्सऐप पर सिगरेट-प्रिय मित्रमंडली को मैसेज भेज दिया था.

”सिर्फ़ 21 दिन की तपस्या ऐसा रंग दिखा सकती है!” न मानव ने कभी सोचा था, न रतन ने.

चलते-चलते
हमारे ब्लॉग पर हमारी एक विदुषी पाठक का बार-बार कामेंट आता है-
”प्रिय लीला जी मुझे कविता लिखनी नहीं आती अत:अपना दर्द इतना अकेलापन महसूस होता है लिखने के लिए भी विषय नहीं मिल रहे टीवी खोलो वहाँ कोरोना परिवार में किसी का फोन आता है एक ही बात सब ठीक हो चलो यह समय भी कट जाएगा.”
उनके बहाने सबको एक संदेश-
अपने मन के उत्साह और साहस को बनाए रखिए.
अकेलापन उतना उत्पाती नहीं है, जितना अकेलेपन का अहसास.
अकेलेपन का अहसास दूर करने के ‘हमको मन की शक्ति देना’ जैसे गीत सुनिए-गुनगुनाइए. नई-नई साइटस पर पढ़ने का समय मिला है- उसका सदुपयोग कीजिए.
ऐसे समाचार ढूंढ-ढूंढकर पढ़िए-
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जो काम अब तक नहीं कर पाए कीजिए, खुद साहसी बने रहिए, दूसरों को साहसी बनाइए.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “तपस्या (लघुकथा)

  • लीला तिवानी

    संकट की इस घड़ी मेंअपना संबल खुद बनकर दूसरों का संबल बनिए. अकेलेपन को तपस्या बनने दीजिए.

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