कविता

आदम

आदमी
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बड़ा डर लगने लगा
इस आदम की जात से
अंदाज नहीं इसका कुछ
चल रहा है क्या इसके अंतर में
लगा रखे हैं चेहरे पे चेहरे
कौन असली कौन नकली
बड़ा मुश्किल है इसका जान पाना
हंसकर करेगा गले मिल बतियां
रखकर जेब में सीने में उतार देने को खंजर
किस पर करे विश्वास और किस पर अविश्वास
सांप फुसकारता तो है काटने से पहले
यह तो बिना फुसकारे ही काट लेता है
सांप के काटे का तो है इलाज
इसका काटा तो मर जाए बेइलाज
बचके रहना पड़ता है इससे आज
जाने कब घात लगा के कर दे वार
बड़ा मुश्किल है अंदाज़ करना
आदमी है कि सांप

ब्रजेश

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020