धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

विशेष सदाबहार कैलेंडर- 155

1.छोडूं मैं किसे प्रभु दोनों ही तुम्हारे हैं,
‘सुख’ में तुम्हारा शुक्र करूं,
‘दुख’ में तुमसे फरियाद करूं,
जिस हाल में भी तू रखे मुझे, तुझे मैं याद करूं.

2.कपड़ों से तो सिर्फ पर्दा होता है,
हिफाजत तो नज़रों से होती है.

3.मौत सिर्फ नाम से बदनाम है,
वरना तकलीफ तो ज़िंदगी ही ज्यादा देती है,
ऐसे ही बीवी सिर्फ नाम से बदनाम है,
वरना तकलीफ में वही साथ देती है.

4.मुझे पसंद करो या मुझसे नफरत करो दोनों चीजें मेरे हक में हैं,
पसंद किया तो में आपके दिल में हूँ, नफरत की तो में आपके दिमाग में हूँ.

5.कुंडली में शनी,
दिमाग में मनी,
जीवन में दुश्मनी,
तीनों हानिकारक हैं.

6.हमारा जन्म हमारी मृत्यु हमारी मर्जी से नहीं होती,
फिर इस जन्म-मृत्यु के बीच होने वाली
घटनाएं, व्यवस्थाएं हमारी मर्जी से कैसे हो सकती हैं!

7.जमीर बेच कर अमीर हो जाना,
इससे बेहतर है, जमीर रख के फ़कीर हो जाना.

8.मोहताज नहीं औरत किसी गुलाब की,
वो तो खुद बागबां है, इस कायनात की.

9.यह दिल में मस्ती क्यों छाई है,
क्या बहार आई है ?

10.आ कहीं मिलते हैं हम ताक़ि बहारें आ जाएं,
इससे पहले कि ताल्लुक में दरारें आ जाएँ.

11.अपने लिए भी मौसमे गुल है बहार है,
जब से सुना है उनको मेरा इंतज़ार है.

12.लुत्फ़ जो उस के इंतज़ार में है,
वो कहाँ मौसम-ए-बहार में है.

13.काँटों को मत निकाल चमन से ओ बाग़बाँ,
ये भी गुलों के साथ पले हैं बहार में.

14.शिद्दत से बहारों के इंतेज़ार में सब हैं,
पर फूल मोहब्बत के तो खिलने नहीं देते.

15.संबंध बड़े नहीं होते,
उसे संभालने वाले बड़े होते हैं.

16.हम सब एक दूसरे के बिना कुछ नहीं हैं,
यही रिश्तों की खूबसूरती है.

17.बस ज़िन्दगी के उसूलों पे जी रहे हैं,
वक़्त बदल रहा है, हम भी बदल रहे हैं.

18.वक़्त की अदालत में हर कोई गुनहगार है,
आज मुझे सजा मुकर्रर हुयी कल को तेरा इंतज़ार है.

19.बेहतर है के वो रिश्ते टूट जाएँ जो वक़्त की डोर से बंधे हो,
जो बदलते वक़्त के साथ भी ना बदले वही अपना है.

20.वक़्त की किताब के कुछ पन्ने उलटना चाहता हूँ,
मैं जो कल था आज फिर वही बनना चाहता हूँ.

21.अपने भी अजनबी हो जाते हैं वक़्त के साथ,
कुछ अजनबी भी अपने हो जाते हैं वक़्त के साथ.

22.वक़्त और हालात तो बदल ही जाते हैं मगर,
दर्द तब होता है जब वक़्त के साथ ज़ज़्बात भी बदल जाते हैं

23.प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है,
नए परिंदों को उड़ने में वक़्त तो लगता है.

24.जो लिबासों को बदलने का शौक़ रखते थे,
आखरी वक़्त ना कह पाए क़फ़न ठीक नहीं.

25.वक़्त के साथ-साथ चलता रहे,
यही बेहतर है आदमी के लिये.

26.वो जो शोर मचाते हैं, भीड़ में भीड़ ही बनकर रह जाते हैं,
वही पाते हैं जिंदगी में कामयाबी, जो ख़ामोशी से अपना काम कर जाते हैं.

27.यूँ ही नहीं मिलता कोई मुकाम,
उन्हें पाने के लिए चलना पड़ता हैं,
इतना आसान नहीं होता कामयाबी का मिलना,
उसके लिए किस्मत से भी लड़ना पड़ता हैं.

28.जिंदगी जीने का तरीका उन्हीं लोगों को आया है,
जिन्होंने अपनी जिंदगी में हर जगह धक्का खाया है,
जमाया है सर्द रातों में खुद को,
तपती धूप में खुद को तपाया है,
वही हुए हैं कामयाब जिंदगी में,
उन्होंने ही इतिहास रचाया है.

29.फूल खिलते रहें ज़िंदगी की राह में,
हंसी चमकती रहे आपकी निगाह में.
कदम-कदम पर मिले खुशी की बहार आपको,
दिल देता है यही दुआ बार-बार आपको.

30.है दुआ मेरी खुदा से,
कि कामयाब करे तुझे हर तरीके से,
दूर रखे हर मुश्किल से,
और तू हर पल खुश रहे दिल से.

31.सूरज की किरणें तेज़ दें आपको,
खिलते हुए फूल खुशबू दे आपको,
हम जो देंगे वो भी कम होगा,
देने वाला ज़िंदगी की हर ख़ुशी दे आपको.

प्रस्तुत है पाठकों के और हमारे प्रयास से सुसज्जित विशेष सदाबहार कैलेंडर. कृपया अगले विशेष सदाबहार कैलेंडर के लिए आप अपने अनमोल वचन भेजें. जिन भाइयों-बहिनों ने इस सदाबहार कैलेंडर के लिए अपने सदाबहार सुविचार भेजे हैं, उनका हार्दिक धन्यवाद.

हर सुबह एक नया सदाबहार अनमोल वचन निकालने के लिए आप हमारी इस ऐप कम वेबसाइट की सहायता ले सकते हैं-

https://www.sadabaharcalendar.com/

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “विशेष सदाबहार कैलेंडर- 155

  • लीला तिवानी

    तकदीर के लिखे पर कभी शिकवा न कर,
    तू अभी इतना समझदार नहीं हुआ है,
    कि मालिक के इरादे समझ सके.

Comments are closed.