इतिहासलेख

शहीदेआज़म भगत सिंह ‘नास्तिक’ थे ?

शहीद-ए-आज़म सरदार भगत सिंह कभी भी खून-खराबा के पक्षधर नहीं रहे हैं, वे वामपंथी विचारधारा से न केवल प्रभावित थे, अपितु कार्ल मार्क्स के विचारों व सिद्धांतों के पोषक भी थे । वे भाग्यवादी ईश्वरीय संस्कार के प्रति नास्तिक थे। दरअसल, वे कम्युनिस्ट समाजवादी थे, क्योंकि उन्हें पूँजीपतियों की मजदूरों के प्रति शोषण की नीति पसन्द नहीं आती थी । उस समय अँग्रेज ही सर्वेसर्वा थे तथा कम ही भारतीय उद्योगपति उन्नत हो पाये थे,  इसलिए मजदूरों के प्रति ये उद्योगपति और अंग्रेज ज्यादा ही शोषक थे, इसलिए इन अत्याचारियों के विरुद्ध भगत सिंह ने विगुल फूँक रखा था । तभी तो ऐसी नीतियों को ब्रिटिश संसद में पारित न होने देना उनके दल का निर्णय था।

सभी चाहते थे, अंग्रेजों को पता चलना चाहिये कि भारतीय जाग चुके हैं और उनके हृदय में ऐसी नीतियों के प्रति न केवल आक्रोश, अपितु नफ़रत है और तब भगत सिंह ने दिल्ली सेंट्रल एसेम्बली में बम फेंकने की योजना बनायी। यह बम केवल जोरदार आवाजवाली और ध्रुमसहित थी, क्योंकि भगत सिंह चाहते थे कि इसमें कोई खून खराबा न हो और इन अंग्रेजों तक ऐसे निरीह भारतीयों की ‘आवाज़’ भी पहुँचे। शुरुआत में उनके दल के लोग ऐसा नहीं सोचते थे, परंतु सर्वसम्मति से इस कार्य के लिए भगत सिंह तथा बटुकेश्वर दत्त को चुना गया। नियोजित योजनानुसार 8 अप्रैल 1929 को केन्द्रीय असेम्बली में इन दोनों ने ऐसे स्थान पर बम फेंका, जहाँ कोई मौजूद न था । पूरा सेंट्रल हॉल धुएँ से भर गया। भगत सिंह चाहते तो भाग भी सकते थे, पर उन्होंने दण्ड पाने हेतु मन से स्वीकृति ले चुके थे, चाहे फाँसी ही क्यों न हो जाय ? तभी तो उन्होंने खुद को भागने-भगाने से मना कर दिया। उस समय वे दोनों खाकी कमीज़ और निकर में थे।

बम फटने के बाद उन दोनों ने ‘इंकलाब जिन्दाबाद’ और ‘साम्राज्यवाद मुर्दाबाद’ का नारा भी लगाए तथा अपने साथ लाये पर्चे को हवा में उछाले । कुछ ही देर बाद पुलिस आई और इन दोनों को ग़िरफ़्तार कर लिया। सुखराम इनकी मदद में थे, जो बाद में धराये! 9 को अंग्रेज़ सरकार को जगाने के लिये बम और पर्चे फेंके थे। सरदार भगत सिंह न सिर्फ क्रांतिकारी देशभक्त थे, अपितु एक अध्येता, कलम के जादूगर व दार्शनिक लेखक, पत्रकार और इन सबसे भी बड़े एक महान इंसान थे। उन्होंने 23 वर्ष की अल्पायु में संसारभर के कई क्रांतियों के बारे में गहन अध्ययन किया था । उन्हें कई भाषाओं की जानकारी थी, यथा- पंजाबी, उर्दू, हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, बांग्ला और आयरिश भाषा भी ! उस उम्र में उन्होंने अकाली और कीर्ति नामक दो अखबारों का संपादन भी किया था। वे देश में समाजवाद के पहले विचारक थे ! लगभग 2 वर्ष जेल में रहे, जहाँ वे अपने क्रांतिकारी विचारों पर आलेख लिखा करते थे।

वे कार्ल मार्क्स से प्रभावित थे । वे पूँजीपतियों को दुश्मन समझते थे । उन्होंने जेल में एक लंबा निबंध भी लिखा, शीर्षक था ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ’, जो अंग्रेजी में था। जेल में साथियों के संग भगत सिंह ने चौसठ दिवसीय भूख हड़ताल भी किये थे ! जेल में साथी यतीन्द्रनाथ दास की भूख हड़ताल के दौरान ही मृत्यु हो गई थी । तारीख 23 मार्च 1931 की अहले सुबह को भगत सिंह और उनके दो साथी, यथा- सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गई । कहते हैं, फांसी पर जाने से पहले वे ‘बिस्मिल’ की जीवनी पढ़ रहे थे ! वर्ष 1907 के 28 सितम्बर को जाट सिख परिवार में जन्म लिए भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को 23 मार्च 1931 को लाहौर सेंट्रल जेल में घोषित तिथि से पहले ही फाँसी दे दी गयी ! कहा जाता है, महात्मा गाँधी अगर चाहते तो विद्वान अधिवक्ताओं से पैरवी कराकर  इनकी फाँसी सजा को खत्म की जा सकती थी या आजीवन कारावास में बदली जा सकती थी!

डॉ. सदानंद पॉल

एम.ए. (त्रय), नेट उत्तीर्ण (यूजीसी), जे.आर.एफ. (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), विद्यावाचस्पति (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर), अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी के प्रशंसित पत्र प्राप्तकर्त्ता. गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, RHR-UK, तेलुगु बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, बिहार बुक ऑफ रिकॉर्ड्स इत्यादि में वर्ल्ड/नेशनल 300+ रिकॉर्ड्स दर्ज. राष्ट्रपति के प्रसंगश: 'नेशनल अवार्ड' प्राप्तकर्त्ता. पुस्तक- गणित डायरी, पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद, लव इन डार्विन सहित 12,000+ रचनाएँ और संपादक के नाम पत्र प्रकाशित. गणित पहेली- सदानंदकु सुडोकु, अटकू, KP10, अभाज्य संख्याओं के सटीक सूत्र इत्यादि के अन्वेषक, भारत के सबसे युवा समाचार पत्र संपादक. 500+ सरकारी स्तर की परीक्षाओं में अर्हताधारक, पद्म अवार्ड के लिए सर्वाधिक बार नामांकित. कई जनजागरूकता मुहिम में भागीदारी.