मुक्तक/दोहा

दोहे “सच्चाई का अंश”

जब भी लड़ने के लिए, लहरें हों तैयार।
कस कर तब मैं थामता, हाथों में पतवार।।

बैरी के हर ख्वाब को, कर दूँ चकनाचूर।
जब अपने हो सामने, हो जाता मजबूर।।

जब भी लड़ने के लिए, होता हूँ तैयार।
धोखा दे जाते तभी, मेरे सब हथियार।।

साधन हो पैसा भले, मगर नहीं है साध्य।
हिरती-फिरती छाँव को, मत समझो आराध्य।।

राज़-राज़ जब तक रहे, तब तक ही है राज़।
बिना छन्द के साज भी, हो जाता नाराज।।

वाणी में जिनकी नहीं, सच्चाई का अंश।
आस्तीन में बैठ कर, देते हैं वो दंश।।

बैठे गंगा घाट पर, सन्त और शैतान।
देना सदा सुपात्र को, धन में से कुछ दान।।

बन्द कभी मत कीजिए, आशाओं के द्वार।
मजबूती से थामना, लहरों में पतवार।।

लोकतान्त्रिक देश में, कहाँ रहा जनतन्त्र।
गलियारों में गूँजते, जाति-धर्म के मन्त्र।।।

हँसकर जीवन को जियो, रहना नहीं उदास।
नीरसता को त्याग कर, करो हास-परिहास।।

आड़ी-तिरछी हाथ में, होतीं बहुत लकीर।
कोई है राजा यहाँ, कोई बना फकीर।।

सीधे-सादे हों भले, लेकिन चतुर सुजान।
लोग उत्तराखण्ड के, रखते हैं ईमान।।

सुलगे जब-जब हृदय में, मेरे कुछ अंगार।
तब तुकबन्दी में करूँ, भावों को साकार।।
— डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’

*डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। 2011 में "सुख का सूरज", "धरा के रंग", "हँसता गाता बचपन" और "नन्हें सुमन" के नाम से मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला। क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ। सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ सम्प्रति-अप्रैल 2016 में मेरी दोहावली की दो पुस्तकें "खिली रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी प्रकाशित हुई हैं। -- मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है