कविता

गंगा मां के विभिन्न नाम

 

भागीरथ के तप का प्रतिफल,
*जटाशंकरी* कहलाई *शिवाया*।
जहृनु ऋषि की पुत्री *जाह्नवी* ने,
*देवनदी* का रुप अपनाया।।

*उत्तरवाहिनी* ने करके कल-कल,
जड़ी-बूटियों का अमृत बिखराया ।
*देवनदी* का पहन के चोला,
*मंदाकिनी* ने भूमि पर धन उपजाया।।

*मुख्या* की निर्मल – अविरल धारा ने,
मानव को दुष्कृत्यों से मुक्त कराया।
*मुक्तिदायिनी* है पावन *गंगा*
जनकल्याण करना इसने ही सिखाया ।।

अंजु गुप्ता

*अंजु गुप्ता

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