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भारत की धार में इंडिया को ढोना पूर्णतः असंगत

भारत की धार में इंडिया को ढोना पूर्णतः असंगत
यह हम सभी जानते हैं कि हिंदी शब्द संस्कृत के सिंधु से माना जाता है। सिंध नदी के आसपास के भू भाग को सिंधु  के नाम से जाना गया। यही सिंधु शब्द ईरानी में जाकर हिन्दू और फिर हिन्द हो गया। इसका अर्थ था सिंधु प्रदेश। कालांतर में ईरानी भारत के अधिक भू भागों से परिचित होते गए और इस शब्द का अर्थ विस्तार होता गया। हिन्द शब्द पूरे भारत का वाचक हो गया। इसी  हिन्द शब्द में ईक प्रत्यय जुड़ गया, तब यह शब्द हिन्दीक बना जिसका अर्थ हुआ हिंद का।
यूनानी शब्द इंदिका या अंग्रेजी शब्द इंडिया आदि इसी हिन्दीक शब्द के ही विकसित रूप हैं। उक्त विश्लेषण डॉ नगेन्द्र की पुस्तक, हिंदी साहित्य का इतिहास की भूमिका में वर्णित है।
इंडिया शब्द अंग्रेजों के साथ भारत में आया। फिरंगियों ने   भारत शब्द को तोड़ने के साथ- साथ देश की संस्कृति और सभ्यता को तोड़ने का काम किया। हमारे ऊपर जो जुल्म किये वे आज भी हमारे भीतर शोले बनकर दहक रहे हैं। ब्रिटिश सत्ता के जाने के बाद ,अंग्रेजों के जाने के बाद , इस शब्द का यहाँ रह जाने का औचित्य ही क्या है? यह शब्द हमारी  परम्परा का हिस्सा है ही नहीं। जो संस्कृति का अंश न हो औऱ उसके ढोने से कोई फल की प्राप्ति भी नहीं होती औऱ उसे अपनाना भी न्यायसंगत कदापि नहीं है। निःसंदेह इस शब्द से दासता का बोध होता है।  भारत हमारा शब्द है। हमारे पूर्वजों का दिया हुआ नाम है। हमारे देश में व्यक्तियों के नाम से शहरों और गांवों के नाम रखने की परंपरा आज भी है।
    शकुंतला और दुष्यन्त के पुत्र चक्रवर्ती राजा हुए भरत। इन्हीं के नाम पर इस देश का नाम भारत हुआ। त्रेता में राजा दशरथ औऱ कैकेयी के पुत्र हुए भरत जो धर्मात्मा त्यागी हुए।
इस आधार पर हमें भारत शब्द अधिक न्यायसंगत और प्रिय है। समूचे विश्व में केवल भारत ही ऐसा देश है जिसकी सीमाओं में हमने माँ की परिकल्पना की है। आज विश्व के किसी भी देश में बैठा भारतवासी गर्व से भारत माता की जय बोलता है। इंडिया शब्द कठोर शब्द है जिसमें कहीं से भाव का जुड़ाव नहीं है। विश्व के किसी भी कोने में जब भारत का नाम लिया जाता है, तब उनके मन मस्तिष्क में राम , कृष्ण, महावीर, योग ,ध्यान , गीता, रामायण, वेद, पुराण शब्द स्वतः ही आ जाते हैं । क्योंकि इनका सम्बन्ध भारत से है। इंडिया से नहीं। भारत का अर्थ है ऋतु का आनंद, वसन्त में उत्सव, होली का खुशी दीपावली की जगमगाहट। जबकि इंडिया ने हमें क्या सिखाया बेलेन्टाइन! जिसकी गंदगी आज भारत की निर्मलता औऱ पवित्रता पर  खूब दिखाई देती है। । भारत ने एक ओर गांधी को  दिया तो  दूसरी ओर सुभाष को दिया।
एक विन्रमता जानता है तो दूसरा हिंसा का उत्तर देना भी।
भारत वसुधैव कुटुम्बकम , गङ्गा युमना संस्कृति को मानने वाला  देश है। गङ्गा के घाट – संगम पर कुम्भ का दृश्य भारत की संस्कृति की पूर्ण व्याख्या है।
सूर्यकांत त्रिपाठी ने भारत माँ की वंदना में कविता लिखी
जिसमें  भारत को माँ भारती का स्वरूप मानकर  सिर से पैरों तक जो उपमान दिए हैं वह भारत के नागरिकों के लिए प्रणम्य है।
  किसी भी देश का कानून उस देश के संविधान से चलता है। भारत के संविधान में देश का नाम भारत गणराज्य है। इसका अंग्रेजी नाम भी भारत  ही होना चाहिए। इंडिया कदापि नहीं। आज भारत स्वतन्त्र है तो गुलामी का दिया हुआ नाम स्वीकार नहीं है। इसलिए  भारत की धार में इंडिया शब्द को ढोना आज नितान्त असंगत है।
                              डॉ. शशिवल्लभ शर्मा

डॉ. शशिवल्लभ शर्मा

विभागाध्यक्ष, हिंदी अम्बाह स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय, अम्बाह जिला मुरैना (मध्यप्रदेश) 476111 मोबाइल- 9826335430 ईमेल-dr.svsharma@gmail.com