कविता

प्यार की परिभाषा

शब्दों से ही क्या
इजहार होता है प्यार का
जरूरी है क्या शब्द
मुझे तुमसे प्यार है
बिना शब्दों के भी
वोह इजहार होता है
हमारे कार्य से
इजहार होता है उसका
गुलाब देने से ही कोई प्यार
नहीं होता
एक मिट्ठी मुस्कान काफी है
इजहारे प्यार को
एक मिट्ठी झिड़की भी
उसी प्यार का इजहार है
गालों पर हलकी चपत भी
प्यार ही तो है
केवल कुछ लेने और देने से ही
प्यार अभिव्यक्त नहीं होता
एक हल्का सा कोमल
स्पर्श भी प्यार ही तो है
यह नाज़ और नखरे भी
उसी प्यार की परिभाषा
में ही तो आते हैं
प्यार नियामत है
छलक रहा हर घड़ी
इस  सुंदर अहसास को
महसूस करो बस
*ब्रजेश*

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020