सामाजिक

साफ सफाई

हमारे जीवन में कई ऐसे काम है जो कर्तव्य की श्रेणी आते है,जैसे अपने परिवार का भरण पोषण करना,बच्चों की देखभाल करना आदि.यह तो हमारे व्यक्तिगत कर्तव्य हैंजिसका निर्वाह हम हर हाल में करते हैं.
चाहे समय और परिस्थिति कैसे भी क्यों ना हो.हमे हमेशा हमारे निजी कर्तव्यों का विषेश ध्यान रहता है परंतु कुछ कर्तव्य ऐसे होते हैं जो कि सार्वजनिक होते हैं जिसका पालन
करना हम बहुत ही कम उचित समझते हैं या यूं कहिए कि पालन करना ही नही चाहते,क्योंकि हम ऐसे कर्तव्यों का पालन ही नही करना चाहते जो सार्वजनिक होते हैं।क्योंकि हमारी मानसिकता यह है कि यह सब हमारा काम नही हैं ये सारे काम तो सरकार के हैं जैसे सार्वजनिक स्थलों पर साफ सफाई नही रखना अगर कचरे का डिब्बा पास में रखा भी हो तो हम कचरा इधर उधर ही फेंक देते हैं हमारी मानसिकता है कि साफ सफाई का काम तो सफाई कर्मियों का है आखिर सरकार उन्हें तनख्वाह किस बात की देती हैं तो हम यह काम क्यों करें.हमें कचरे का डिब्बा उठाकर कचरा फेंकना तो है नही ये काम तो सफाई कर्मी कर ही लेगा पर हम कचरा डिब्बे में फेंक देंगे तो कौन सा नुकसान हो जायेगा।
                         लेकिन  नही हम ऐसा नही करते ,क्योंकि हमारे अनुसार यह हमारा काम नही है,हाँ लेकिन सार्वजनिक स्थलों पर हमें पूरी से साफ सफाई दिखाई देनी चाहिए. जैसे अस्पताल, सिनेमा घर,मंदिर, पर्यटन स्थल
हमे देखते साथ ही स्वच्छ अवस्था में दिखाई देनी चाहिए और हम यदि वहाँ गये तो देखते ही देखते हम कचरा बिखरा कर वापस आ जायेंगे।तो यह भला कहाँ की बात हुई।
                 हम खुद अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करते और अधिकार पूरा मांगते हैं यह भला कहाँ की बात हुई। देश के नागरिक होने के नाते हमारा यह परम कर्तव्य बनता है कि हम भी अपनी जिम्मेदारी निभायें जिससे हमारे आसपास के माहौल सही बने रहें।यह हमें हमेशा याद रखना होगा कि बिना कर्तव्य निभाये हमें अधिकार की बातें करने का कोई अधिकार नही है.
— अमृता राजेन्द्र प्रसाद

अमृता जोशी

जगदलपुर. छत्तीसगढ़