लघुकथा

कला

कुछ लोगों को खुश रहने और खुश करने की कला आती है. सलिला तो जैसे खुशियों की रसधार ही थी.

सुबह-सवेरे सवि का सलिला से मिलना हुआ. तब उसे पता भी नहीं था कि उसका नाम सलिला है. बस रास्ते में दोनों का आमना-सामना हुआ और मन ने सलिला को ”राम-राम जी” कहने का संकेत किया.

”राम-राम जी, राम-राम.” सलिला ने भी हंसते हुए ऐसे कहा मानो दोनों की पुरानी पहचान हो! ”वैसे आपका नाम क्या है?” फिर उसने पूछा.

”सवि, सवि खुराना.”

”मेरा नाम सलिला नंदी है.”

”सलिला नंदी! तब तो आप महादेव जी की पुजारिन भी होंगी!”

”सही पहचाना आपने. आज सोमवार को महादेव और नंदी जी की विशेष पूजा करके ही निकली हूं.” खुशी से चहकते हुए सलिला बोली.

खुशनुमा दिल वाली सवि को खुशनुमा चेहरे वाली सलिला मिल गई थी. उम्र लगभग सवि जितनी, मंझोला कद, छरहरी देह-यष्टि, चेहरे पर सौम्यता, करीने से बनाए हुए बाल, गोरे रंग पर फबता हुआ कश्मीरी कढ़ाई वाला काला सूट, मस्तक पर लाल बिंदी, कोरोना-काल का तोहफा मास्क लगाए हुए, स्टाइलिश छड़ी लिए सलिला सुंदरता की मूरत लग रही थी.

”और कैसी हैं आप?” सवि ने सरलता से कहा.

”ठीक हैं जी, छड़ी के सहारे चल रहे हैं. कूल्हे की हड्डी बदलवाई थी, आज पूरे सात महीने हो गए हैं, अभी भी ज्यादा चलने या खड़े होने पर दर्द होता है.” मुस्कुराहट ने दर्द को मानो पछाड़ दिया था.

”बाहरी अंग लगा है जी, सेट होते-होते होगा! शुक्र है आप चल तो पा रही हैं!” सवि ने दिलासा दिया.

”बिलकुल जी बिलकुल, फॉरेन पार्ट लगा है, दर्द ही सही, चल तो पा रही हूं.” सलिला ने सहज मुस्कान से स्वीकारा.

”वैसे आप जा कहां रही हैं?” किसी मनचाही सखी से बतियाने का इतना खूबसूरत अवसर सवि भला हाथ से कैसे जाने देती!

”चॉकलेट लेने.”

”चॉकलेट! किसके लिए?”

”अपने लिए, वैसे तो मैं डाइबिटिक हूं, पर डॉक्टर ने डॉर्क चॉकलेट खाने की इजाजत दे दी है.”

”वाह! आपको चॉकलेट अच्छी लगती है?” सवि ने संवाद आगे बढ़ाया.

”बहुत अच्छी. चॉकलेट से एनर्जी भी मिलती है.” सलिला जोर से खिलखिला कर हंस पड़ी.

”वाह, भई बाह! आपकी चॉकलेट ने तो हमें भी खुश कर दिया!

”जिंदगी मिली है जीने के लिए,
उसको हंस के जियो,
कि आपको देखकर भी कोई मुस्कुराता होगा.”
जाते-जाते सलिला जीने की कला सिखा गई थी.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “कला

  • लीला तिवानी

    सलिला की सहज मुस्कान और बात-बात पर खिलखिलाहट ने मानो ”दुःख में भी पुलकित हो तो जानें” की चुनौती को स्वीकारा था बड़ी उम्र, कोरोना-काल और इतने बड़े ऑपरेशन के चलते उदासी और मायूसी को मात देकर विजय भी हासिल की थी. खुशियों का खजाना बनकर सबको जीवन को खुशनुमा बनाने की कला सिखा दी थी.

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