कविता

मीडिया और हम

तटस्थ सूचना निष्पक्ष विश्लेषण
समय वो पीछे छूट गया
दायित्वों से वचनबद्ध था
चौथा स्तंभ वो टूट गया ।

सनसनी शब्द के मतलब बदले
खबरों के चैनल की बाढ़
विज्ञापन में उलझे दर्शक
ढूंढ रहे हैं ‘ समाचार ‘ ।

मूल्य तिरोहित करता जाता
समाज का नुमाइंदा है
ये प्रतिनिधि है धन कुबेर का
मर्यादा बची ना ज़िंदा है ।

नतीजों की जल्दी है इनको
मीडिया ट्रायल की होड़ है
स्वयंभू जज बन करें फैसला
न्यायपालिका गौड़ है ।

बयानबाज़ी और घोषणाओं के
झूठ परोसे जाते हैं
महिमामंडन है बाजारों का
ग्रामीण उपेक्षित रह जाते हैं ।

प्रतियोगिता को रख पीछे
पारदर्शिता को अपनाएगी
तब ही मीडिया होगी प्रबल
समाज का हित कर पाएगी ।

हर्षिता सिंह

रायबरेली उत्तर प्रदेश रचनाएं विभिन्न ऑनलाइन पोर्टल व समाचार पत्रों में प्रकाशित हो चुकी हैं - https://www.sahityamanjari.com/hindi-kavita/tum-by-Harshita-Singh.php

2 thoughts on “मीडिया और हम

  • राजकुमार कांदु

    वाह लाजवाब लिखा है आपने ! आज निष्पक्ष पत्रकारिता भी व्यावसायिकता की अंधी दौड़ में शामिल होकर अपना अस्तित्व खो चुकी है ।

    • हर्षिता सिंह

      आपका बहुत धन्यवाद ।

Comments are closed.