हास्य व्यंग्य

व्यंग्य – सुपर स्टार : मौत

पिछले आठ-दस महीनों से यमराज का नृत्य प्रेम अचानक बढ़ गया है। अब वे फुफकारते हुए भैंसे पर बैठकर नंगा नाच नहीं करते। चुपके से आते हैं। नये रूप में। सूक्ष्म नहीं, अतिसूक्ष्म वाहन पर। कुछ दिनों चीन में ड्रैगन, लॉयन,उइगुर,यांगे और मियाओ डांस करने के बाद वे बोर हो गये। फिर अदृश्य होकर इटली, फ्रांस, स्पेन की रंगीनियों का मज़ा चखा। वहाँ के अधनंगे नाच उनकी सात्विक आत्मा को आरंभ में तो अच्छे लगे लेकिन भोग-विलास में अधिक मन नहीं रमा। देवभूमि भारत की चाह आखिर उन्हें यहाँ खींच लायी। विगत छ: महीनों से यमराज देश में कत्थक, गरबा, लावणी, भांगड़ा, कथकली का आनंद ले रहे हैं। अब वे शिव का तांडव करने में लगे हैं। ता था थैया में वह लय कहाँ? जो शिव के डमरू में है। लोग महा मृत्युंजय मंत्र का जाप करते हैं और यम को वह अपने लिए बुलौवा लगता है। पहुँच जाते हैं बिन बुलाये। लो हम आ गये। अब हमारे साथ चलो।
इस देश में काल पहेली नहीं मनोरंजन बना हुआ है! एक मौत की ओट में रोज की हज़ारों मौतें घूंघट ओढ़कर निकली जा रही है। कहीं भुखमरी दुल्हन बन रो रही है तो कहीं बेरोज़गारी बेगम बनी कसमसा रही है। महँगाई की धुन अलग-अलग वाद्यों में बेसुरी रागों बनकर कान फाड़ रही है। किसानों की आत्माएँ फाँसी में लटके-लटके बाढ़ के पानी को देखकर घबरा रही हैं कि कहीं डूबकर मरने की नौबत आ जाये। सरहद से मौत शहीद का चोला पहनकर गाती हुई आती है-“मेरा रंग दे बसंती चोला।”इधर घर के आँगन में शहीद को देखकर परिजनों के चेहरे का रंग उड़ जाता है। उधर सरकार के हाथ से तोते उड़ जाते हैं। अब सफेद कबूतर उड़ाने का नहीं। बाज और गिद्ध उड़ाओ।
बड़ा अज़ीब नाच है मौत का। कोई शांत हो रहा है तो कोई अशांत और कोई सुशांत। देश मृत्यु-पर्व मना रहा है।जीवन की कीमत मौत को हराने में दाँव लगा रही है। सरकारी अस्पतालों में देह जाती है। कुछ दिनों में आत्मा को वहीं छोड़कर अकेली बाहर आ जाती है। गाना गाती है – पानी केरा बुलबुला ज्यों मानव की जात। कबीर बाबा गुनगुनाते थे-‘फूटा कुंभ जल, जल ही समाना बाहर भीतर पानी। कहत कबीर सुनो भाई साधो यह तत्व कह्यो ग्यानी।।’ कुंभ नज़र ही नहीं आ रहे। सब ओर पानी ही पानी है। यह रहस्यवाद डॉक्टर साहब की समझ में आ गया। पुरुष के बदले महिला का शव संबंधियों को टिकाते हुए बोले- क्या रखा है शरीर में? सबमें तो उसी परमेश्वर का वास है। आत्मा, परमात्मा में लीन हो गयी। बॉडी तो बॉडी है। नाउ इट इज़ नो बॉडी।” निजी अस्पताल में आत्माएँ शरीर में रहने के लिए लाखों रुपये दे रही हैं। उनको परमात्मा से मिलने में कोई इंटरेस्ट नहीं। अभी इहलोक का पूरा मज़ा नहीं चखा तो परलोक में जा कर काहे सड़े? श्राद्ध पक्ष मे स्वर्ग के द्वार खुले हैं। निकल लो। पर कोई जाना नहीं चाहता। सबको बाबुल का घर ही पसंद है। पिया का घर प्यारा नहीं है। वहाँ ससुराल में सास का भरोसा नहीं। यहीं ठीक है।
मौत! अब केवल पहेली नहीं है।
मौत ! पैसे कमाने का साधन है।
मौत ! सिंहासन तक पहुँचने की सीढ़ी है।
मौत ! शोहरत कमाने की कुंजी है।
मौत ! गरीबी के गाल पर तमाचा है।
मौत ! अमीरी के सिर का नगीना है।
मौत ! आज सिर्फ मौत नहीं। एक सुपर स्टार है।

— शरद सुनेरी