कविता

मिलन

न रोए कोई मेरी मौत पर
न कोई मातम मनाया जाए
मौत तो एक मिलन है
फिर काहे का रोना
काहे का गम
मर कर मैं मिलूंगा
अपने मूल तत्वों से
मिट्टी मिट्टी से
वायु वायु से
जल जल से
अग्नि अग्नि से
आकाश आकाश से
आत्मा परमात्मा से
इस मिलन की घड़ी में
विलाप कैसा
इसलिए मैं चाहता हूं
मिलन के इस मौके पर
उत्सव मनाया जाए
न डाली जाए कोई
रंग में भंग
गाए जाए सिर्फ और सिर्फ
मिलन के गीत

चली गोरी पी से मिलन को चली
नैना बाँवरिया, मन में साँवरिया

डार के कजरा, लट बिखरा के
ढलते दिन को रात बना के
कँगना खनकाती, बिंदिया चमकाती
छम-छम डोले सजना की गली
चली गोरी पी से मिलन…

कोमल तन है, सौ बल खाया
हो गई बैरन अपनी ही छाया
घूँघट खोले ना, मुख से बोले ना
राह चलत सम्भली सम्भली
चली गोरी पी से मिलन…

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020