कविता

किन्नर तथ्य 

अर्द्धनारीश्वर को पूजे तू
और ताने से मुझे पुकारता
शिव भक्त बनता है
मुझको तो तू प्रताड़ता
कैसा तेरा ये स्वांग है
छल का दोहरा दृष्टिकोण है
मैं तो केवल किन्नर तन से हूं
तू बता ! मन से किन्नर कोन है
अग्नि में जलेगा तू
चील – कोए खाएंगे
मिट्टी में दबेगा तू
असत्य की राह पर
तू सत्य कैसे पाएगा
जात-पात रंग-भेद
नस-नस में तेरे बह रहा
मानव तू मानव ना कहलाएगा
मेरे हृदय की जो है संवेदना
तेरे लिए असहाय ही मौन हैं
मैं तो केवल किन्नर तन से हूं
तू बता ! मन से किन्नर कोन है
विलासिता में तृप्त है
नरक तू भोग रहा
काम, क्रोध, लोभ में पड़ा
और मुझे शापित बोल रहा
पवित्र धारा मानवता की
हृदय में ना भर सका
मानव – मानव में भेद कर
सबकी एक धरा ना कर सका
तेरा चरित्र कपट से भरा
हर स्थान पर ही गोण है
मैं तो केवल किन्नर तन से हूं
तू बता ! मन से किन्नर कोन है
© स्वामी दास

स्वामी दास

कवि स्वामी दास (क़लम नाम) दीपक राणा एम. बी. ए. (इन्फोर्मेशन सिस्टम) स्वतंत्र कविता लेखन Email swami.kavi@yandex.com drana0127@gmail.com FB: https://www.facebook.com/kavidas.swami.58 Insta: https://www.instagram.com/kaviswami9080/ Twitter: https://twitter.com/kavi_swami