कविता

हमारे बुजुर्ग हमारी धरोहर

जिनसे घर की शान है, जो घर की पहचान है
करो कभी ना उन्हें उपेक्षित, उनसे घर का मान है
जिनके हाथों ने हैं संभाला, घर की इस फूलवारी को
उन्हें प्रेम दो इस पड़ाव पर, समझो जिम्मेदारी को
उनका ऋण ना चुका सकेंगे, चाहे कर ले लाख प्रयास
मगर अगर आदर दे उनको, मिट जाए सारे संताप
बड़े बुजुर्गों के चेहरे पर, आती गर मुस्कान है
समझो पावन घर का कोना, मिलता यश सम्मान है
“रीत’ कहे गर आदर दोगे, तो ही आदर पाओगे
जैसा कर्म करोगे सोचो, वैसा ही फल पाओगे

— रीता तिवारी “रीत”

रीता तिवारी "रीत"

शिक्षा : एमए समाजशास्त्र, बी एड ,सीटीईटी उत्तीर्ण संप्रति: अध्यापिका, स्वतंत्र लेखिका एवं कवयित्री मऊ, उत्तर प्रदेश