धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

अविनाशी काशी में मनी मोदी जी की देव दिवाली

कार्तिक का महिना बहुत ही महत्वपूर्ण मन जाता हैं।भगवान श्री कृष्ण ने भागवत गीता में स्वयं कहा हैं बकि महीनों में मैं कार्तिक हूँ।अन्य दिवस के अलावा कार्तिक की पूर्णिमा के दिवस और भी ज्यादा महत्वपूर्ण होता है।हर तरफ उत्साह ही उत्साह रहता हैं।कार्तिक मास का यह दिन दिव्य होता हैं।इस दिन पूजन आदि के साथ दीप दान का बहुत महत्व माना गया है।धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह वो खास दिन होता हैं जब देवलोक से समस्त देवी-देवता काशी में पधारते हैं।भगवान शिव के त्रिशूल पर बसी यह नगरी समस्त दुनिया को अपनी ओर हमेशा आकर्षित करता रहा हैं।प्रलय के समय भी इसका विनाश नहीं होता हैं।गंगा के पावन तट पर बसी इस नगरी के 84 घाटों को देव दिवाली के दिन दीपों से सजाया जाता हैं तो इसकी अलौकिक दिव्यता,भव्यता बार बार देखने से लोग नजर नहीं हटाना चाहते हैं।देव दिवाली मनाने की परंपरा की शुरुआत यह हैं कि जब तारकासुर का वध हुआ उसके तीन पुत्रों ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया।उन्होंने वरदान पाया कि जब अभिजीत नक्षत्र हो और वे तीनों भाइयो के महल एक साथ एक ही स्थान पर आ जाये तभी उनकी मृत्यु हो।वरदान पाकर असुर और अत्याचार फैलाने लगे।समस्त देव उसके अत्याचार से त्रस्त होकर भगवान शिव से अपनी रक्षा हेतु प्रार्थना की।भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरासुर का अंत किया।त्रिपुरासुर का अंत होने पर देवताओ ने महादेव का एक नाम त्रिपुरान्तक रखा।भागवन शिव को त्रिपुरारी भी कहा जाता हैं।त्रिपुरासुर का अंत होने पर देवताओ में काफी उत्साह था।देवताओं ने दीप जलाकर भी महादेव का आभार जताया।एक अन्य मान्यता अनुसार देव उठनी एकादशी पर भगवान विष्णु जी अपनी नींद से जगते हैं।भगवान शिव चतुर्दशी को अपने ध्यान से जगते हैं।इस खुशी में समस्त देव गण धरा पर आकर दिए जलाते हैं एवं खुशियां मनाते हैं।
इस वर्ष जब देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी काशी में इस उत्सव को देखने को पधारें यहाँ की सभ्यता एवं संस्कृति का गुणगान करते खुद को नहीं रोक पाए।इतिहास का यह प्रथम काशी का देव दिवाली था जब लेजर लाइट से घाटों को सजाया गया।
यह पहला मौका था जब प्रधानमंत्री मोदी ने यहा के देव दिवाली मे भाग लिया। सबसे पहले वे राजा तालाब के पास स्थित खजूरी में वाराणसी-प्रयागराज सिक्स लेन का लोकार्पण किये।प्रधानमंत्री ने कहा कि बीते वर्षों में काशी के सुंदरीकरण के साथ-साथ यहां की कनेक्टिविटी में जो काम हुआ है उसका लाभ अब दिखने को मिल रहा है।नए हाइवे बनाना हो, पुल-फ्लाई ओवर बनाना हो, ये सारे काम बनारस और आस-पास के क्षेत्रों में अब हो रहा हैं।आजादी के बाद ऐसा कभी नहीं हुआ।उन्होंने किसानों के भी बात की।उन्होंने कहा इतिहास में पहली बार किसान रेल की शुरुआत की गयी है।इन प्रयासों से किसानों को नए बाजार मिल रहे हैं और बड़े शहरों तक पहुंच बढ़ रही है।इन प्रयासों का सकारात्मक असर उनके आय पर भी पड़ रहा है।सिक्स लेन के लोकार्पण के बाद वे विश्वनाथ मंदिर पहुँचे।उन्होंने मंदिर के गर्भगृह में बैछकर पूजा-अर्चना किया।पूजन के बाद वे विश्वनाथ कॉरिडोर का चल रहे निर्माण कार्य का जायजा भी लिए।2019 में मोदीजी ने ही इस कॉरिडोर का शिलान्यास किया था जिसका उद्घाटन आगामी वर्ष 2021 में किया जाएगा।इस पूरे प्रोजेक्ट में करीब 400 करोड़ का खर्च हो रहा है।
ततपश्चात राजघाट पहुँच कर प्रधानमंत्री ने दीप जलाकर देव दीपावली का शुभारंभ किया।अविनाशी काशी का जिक्र ठेठ बनारसी भाषा मे करते हुए कहा उन्होंने कहा पुनवासी पर डुबकी अउर दान पुण्य के महत्व रहल हे।केहु पंचगंगा,दशाश्वमेध त केहु अस्सीघाट पर डुबकी लगावत आयल है। पं. रामकिंकर महाराज पूरी कार्तिक महीना बाबा के कथा सुनावत रहलें।काशीवासी यह भाषा सुन झूम उठे।वे बोले काशी पूरे विश्‍व को प्रकाश देने वाली है।काशी जीवंत है और यहाँ की गलियां ऊर्जावान है।यहा के लोग देव स्‍वरूप है।यहा 84 घाटों को देवता ही प्रज्‍ज्‍वलित कर रहे हैं।उन्होंने सौ साल पहले माता अन्नपूर्णा की चोरी हुई मूर्ति के वापस आने का भी जिक्र किया।उन्होंने कहा माता अन्नपूर्णा एक बार फिर अपने घर लौटकर वापस आ रही हैं।पीएम ने राजघाट पर ही पर्यटन विभाग की ओर से बनाई गई पावन पथ वेबसाइट भी लांच की।
वहा से वे राजघाट से अलकनंदा क्रूज द्वारा रविदास घाट तक लेजर शो का अवलोकन करने निकले।काशी जगमगा रही थी और प्रधानमंत्री जी जगमगाती काशी की भव्यता एवं दिव्यता को एकटक निहार रहे थे।इसके साथ ही वे लोगों का अभिवादन भी स्वीकार रहे थे।वे चेत सिंह किले के सामने क्रूज से ही शिव एवं गंगा महिमा पर आधारित लेजर शो को भी देखे।अपने संसद को देव दिवाली पर अपने साथ पाकर लोगों में काफी उत्साह था।लोग बार बार हर हर महादेव के जयकारे एवं मोदी मोदी के नारे लगा रहे थे।15 लाख दियो से वाराणसी के घाट जगमगा रहे थे।लेजर शो से पूरी दुनिया को काशी की भव्यता से परिचित कराया गया।
वास्तव में काशी जैसा क्षेत्र दुनिया में कही नहीं हैं।देव दिवाली की दीपोत्सव परंपरा सबसे पहले पंचगंगा घाट से हुआ था।इस दिन देवालय,घाट ऐसे सजे होते हैं जैसे धरती पर स्वर्ग उतर आया हो।इस दिवाली के मौके पर देश के कोने कोने से लोग एक झलक पाने को काशी के घाटों पर श्रद्धापूर्वक आते हैं।भारत के अलावा अन्य देशों के भी श्रद्धालु इस उत्सव की एक झलक पाने को लालायित रहते हैं।इसदिन गंगा स्नान एवं दर्शन से मनुष्य के अनेकों पाप नष्ट हो जाते हैं।

✍️ राजीव नंदन मिश्र (नन्हें)

राजीव नंदन मिश्र (नन्हें)

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