मुक्तक/दोहा

दोहा-वसुंधरा

शेषनाग   सिर  है  धरी, मां  वसुंधा   महान।

जन गण की है तारणी, करती जन कल्याण।
सतयुग  त्रेता  द्वापर, कलयुग  तक की मार।
युगों   युगों  से  ढो  रही, है  पापों  का  भार।
हीरे   रत्न   अमुल्य   से, भरे   पड़े    भंडार।
दे  कर  अनमोल  संपदा, सुखी  करे  संसार।
उगले  कनक वसुंधरा, होता  खुशी  किसान।
अन्न   भरे   भंडार   से, होते  पुलकित  त्रान।
तरु  झूमते  मस्त  यहाँ, खिले भाँत के  फूल।
वन  उपवन  हैं   महकते, रस  भरे   कंदमूल।
न्नहें    शावक   उछलते, फिरते  हिंसक जीव।
खेलें    तेरी   गोद    में, लिये  अपना  नसीब।
खग   करें   बसेरा  यहाँ, गाते     तेरा    गीत।
ठंडी   समीर    डोलती, छेड़  मधुर    संगीत।
इंसान  करता  है  मां, हर   पल    अत्याचार।
काटे     तेरी    संपदा,  करता   वन    संहार।
मही,  धरती,  भूमि,  धरा, अनेक   तेरे   नाम।
रत्नावती,  रत्नगर्भा, हो  मम  कोटि   प्रणाम।
— शिव सन्याल

शिव सन्याल

नाम :- शिव सन्याल (शिव राज सन्याल) जन्म तिथि:- 2/4/1956 माता का नाम :-श्रीमती वीरो देवी पिता का नाम:- श्री राम पाल सन्याल स्थान:- राम निवास मकड़ाहन डा.मकड़ाहन तह.ज्वाली जिला कांगड़ा (हि.प्र) 176023 शिक्षा:- इंजीनियरिंग में डिप्लोमा लोक निर्माण विभाग में सेवाएं दे कर सहायक अभियन्ता के पद से रिटायर्ड। प्रस्तुति:- दो काव्य संग्रह प्रकाशित 1) मन तरंग 2)बोल राम राम रे . 3)बज़्म-ए-हिन्द सांझा काव्य संग्रह संपादक आदरणीय निर्मेश त्यागी जी प्रकाशक वर्तमान अंकुर बी-92 सेक्टर-6-नोएडा।हिन्दी और पहाड़ी में अनेक पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। Email:. Sanyalshivraj@gmail.com M.no. 9418063995