सामाजिक

अतिक्रमण

आज हर एक राज्य,हर एक शहर,हर एक मौहल्ले मे एक समस्या एक बहुत जो की वर्तमान मे बड़ी समस्या बन के रह गई है।जो हमारे लिये साथ ही यातायात,बाजारों सभी के लिये चुनौती बन सीना ताने खड़ी है और वो समस्या है *अतिक्रमण*।सच ये अतिक्रमण समस्या दिन प्रति दिन जटिल समस्या का रुप बनती जा रही है।और ये किसी भी एक शहर के लिये नहीं बल्कि पूरे भारत वर्ष के लिये ही बड़ी समस्या बन चुकी है।हमारे देश मे हर कोई आमदनी के स्त्रोतों के लिये कोई ना कोई तो साधन जुटाने का प्रयास करते रहते हैं लोग और जरूरी भी है खुद के परिवार की जिम्मेदारी,खुद के लिये भी आय के स्त्रोत का होना बहुत ही जरूरी है।आखिर पेट का सवाल पेट,पेट मे अन्न होगा तो ही शरीर हमारा काम करेगा।और इस अन्न के लिये आय होना बहुत जरूरी है।आप सभी ने अकसर देखा ही होगा चलती गाड़ियों पर ही सही,या बाजारों मे यदि आप खरीदारी करने जाते हैं तो बाजारों के फुटपाथों पर बहुत से लोग थोड़ा सामान रखकर अपनी दुकान लगा लेते हैं।और हर एक आने जाने वालों से उन सामानों को खरीदने के लिये अपिल भी करते हैं,कहीं-कहीं तो बहुत से ऐसे लोग हैं जो कहीं भी अपना चाय का ठेला लगा लेते,या पानी पुरी का खोंमचा लगा लेते ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं तो इस तरह भूमिभाग को घेर लेते हैं और इस तरह धीरे-धीरे देखा देखी के चलते दूसरे भी छोटे व्यापारी अपना धंधा अतिक्रमण करके राह पर ही जमाते ही चले जाते हैं।बहुत से तो फेरी वाले भी बाजारों मे चलते फिरते सामानों को बेचना शुरु कर देते और ग्राहकों के पीछे ही हाथ धोके पड़ ही जाते हैं।उफ्फ् जब कभी बाज़ारों मे बहुत अधिक भीड़ भरी होती है उस समय तो हालत ही खराब हो जाती।आधा रास्ता तो ये अतिक्रमण करने वाले व्यापारी ही भर के रख देते हैं।तंग गलियों मे चलना भी दुश्वार सा हो जाता है ऐसे मे हर समय जेब कटने,पर्स चोरी होने या चलती औरत के साथ छेड़छाड़ होने की समस्या तो जैसे आम सी हो जाती है।चलने मे भी डर सा आभास होता रहता ऐसे बाजारों मे।और यदि दीपावली या कोई बड़ा त्योहार आ जाऐ जिसमे खरीदारी करने के लिये घर से निकलना पड़े तो दस बार सोचना पड़ता है।घर से निकलने से पहले।ऐसे फुटपाथ पर दुकान लगाने वालों को बहुत बार अधिकारीयों द्वारा हिदायत दी जाती रही है।साथ बहुत बार कारवाई भी की जाती है।परंतु कुछ समय तक फुटपाथ खाली हो जाते,बाजारों से भी फेरी वाले गायब हो जाते परंतु कुछ ही समय के लिये।फिर वही मंज़र देखने को मिलता जिसके तहत बाजारों मे अतिक्रमण का माहौल बन जाता।
इस अतिक्रमण के अंतर्गत सिर्फ़ फुटपाथ वालों को ही दोषी ठहराना गलत होगा।बड़े से ऐसे बहुत से प्रतिष्ठित व्वसायी भी हैं जिनकी भव्य दुकाने होने के बावज़ूद भी ये लोग अपने दुकान का सामान बाहर की और टांग देते या दुकान के बाहर भी सजा के रख देते और साथ ही उनकी दुकान पर काम करने वाले लोगों को दुकान के बाहर सामानों की चौकसी करने और वहां से आने जाने वाले लोगों को आवाज़ दे देकर सामान के बारे मे जानकारी देते ताकि अधिक से अधिक बिक्री हो सके।ये किस तरह की व्यवसाय की पद्धति है जिसे व्यवसायी अपनाकर सभी के लिये समस्याओं को बढ़ावा दे रहे हैं?कुछ व्यवसायी तो अपने दुकान के बाहर ही फुटकर,चिल्लर सामानों को बेचने वालों को अनुमति देते कि मेरी दुकान के बाहर ही तुम दुकान लगा लो उसके एवज़ मे धनराशि लेते किराये के रुप मे,आप ये ना समझते कि इससे सिर्फ़ अतिक्रमण को बढ़ावा मिल रहा है,फुटपाथ पे चलने वालों को जटिल समस्या से जुंझना पढ़ रहा है,सिर्फ़ हर बात मे अपनी आमदनी के स्त्रोत खोजना कहां तक सही है ऐसा करना?फुटपाथ जो कि राहगीरों की सुविधा के लिये बनाऐ जाते हैं ताकि किसी भी तरह का हादसा ना हो साथ ही यातायात भी सुचारू रूप से चलता रहा ताकि किसी भी प्रकार की अप्रिय घटना राहगीरों के साथ ना हो सके परंतु ये अतिक्रमण तो राहगीरों के हक के फुटपाथ को भी लीलता जा रहा है।ये समस्या एक बेल की तरह अपना जाल बिछाते हुए फैलती जा रही है।इस समस्या को सुलझाने के लिये हमारे प्रशासन और अतिक्रमण न्यायिक अधिकारियों द्वारा समय-समय पर कारवाही की जाती रही है।जिसके तहत दुकानों के ऊपर लगे शेड को तोड़ दिया जाता है,या दुकान के बाहर रखे सामानों को अपने कब्जे मे ले लिया जाता है,बहुत से व्यवसाईयों के हाथ ठेलो या छोटी सी गुमटी(दुकान) को ही उखाड़कर ट्रकों मे भर कर कब्जे मे ले लिया जाता है साथ ही जुर्माने की रकम भी भरने की सजा दी जाती रही है।परंतु ये खुद ही वादा करते की अब हम अतिक्रमण नहीं करेंगे लेकिन फिर उसी चक्र को घुमाते हुए अतिक्रमण कर लेते।आऐ दिन अखबारों कि सुर्खियां सी बन गई है ये अतिक्रमण और अतिक्रमण अधिकारियों द्वारा की गई करवाही।ये अतिक्रमणकारियों के ऊपर एक कहावत लागू होती है *आ बैल मुझे मार* सच खुद को ही मुसिबत मे डाल खुद का ही नुकसान करना जैसे आम सी बात हो गयी इनके लिये।पर इसमें कितना अधिक नुकसान है ये नहीं सोचते।
ठीक इसी तरह ही बहुत से ऐसे लोग हैं जो सरकारी नियमों की ध्ज्जियां उड़ाते हुवे अपना मकान जरुरत से ज्यादा ऊंचा बना लेते या तो जितना नियम अनुसार घर का पृष्ठ भाग छोड़ना है वो भी नहीं छोड़ते जिसके तहत भी कारवाई कर अधिकारी वर्ग उस मकान पर कार्यवाही करते रहते।जिससे मकान को गिराने या ऊपरी हिस्से को ध्वस्त कर के नियम की पालन करने की सजा दी जाती है।सोचिये कितनी लागत लगी आपकी जो पल मे जरा से लालच के चलते ध्वस्त हो धराशायी कर दी गई।सपनों का महल बनाइये परंतु सरकारी नियमों का उल्लंघन ना करें।निसम के अंतर्गत किया हर एक कार्य सुखदता का एहसास करवाता है।ऐसी नौबत ही ना आने दें की आप की कोई मोहल्ले मे या बाज़ार मे अतिक्रमण करने पर हसी उड़ाऐ।आप खुद ये अतिक्रमण जैसा कार्य ना करें और ना ही दूसरों को करने दें।यदि कोई भी आपके दुकान के बाहर ही सामान बेचने की अनुमति मांगता है तो उसे भी साफ-साफ इंकार कर दें ताकि आपके दुकान के बाहर से गुजरने वाले ग्राहक आपके दुकान के रखरखाव से आकर्षित होकर खुद ही खींचे चले आऐं।और एक कहावत है किस्मत का लिखा मिलता ही है।आपकी किस्मत की आय पर कोई भी कब्जा नहीं कर सकता।

— वीना आडवानी

वीना आडवाणी तन्वी

गृहिणी साझा पुस्तक..Parents our life Memory लाकडाऊन के सकारात्मक प्रभाव दर्द-ए शायरा अवार्ड महफिल के सितारे त्रिवेणी काव्य शायरा अवार्ड प्रादेशिक समाचार पत्र 2020 का व्दितीय अवार्ड सर्वश्रेष्ठ रचनाकार अवार्ड भारतीय अखिल साहित्यिक हिन्दी संस्था मे हो रही प्रतियोगिता मे लगातार सात बार प्रथम स्थान प्राप्त।। आदि कई उपलबधियों से सम्मानित