सामाजिक

औरतों पर अत्याचार, आख़िर क्यों? 

औरत ने जनम दिया मर्दों को
मर्दों ने उसे बाज़ार दिया
जब जी चाहा मसला, कुचला
जब जी चाहा दुत्कार दिया ….
फ़िल्म साधना के इस बहुचर्चित, निराशावादी और यथार्थवादी गीत में गीतकार साहिर लुधियानवी ने पूरी ऊर्जा उंडेलकर रख दी है। स्त्री की परेशानी, पीड़ा, तकलीफ़, तनाव, तड़फ को जीवंत कर दिया है गीतकार ने। औरतों को घर की सेविका-चाकर-दासी-मज़दूर -कठपुतली- पैरों की जूती समझने वाली पुरानी, रूढ़ीवादी, मर्द मानसिकता के मुंह पर करारा चांटा है ये गीत।
भारतीय सभ्यता, संस्कृति में नारी का स्थान ऊंचा है। ” यत्र पूज्यते नारी, रमंते तत्र देवताः ” अर्थात् जहां पर नारियों की पूजा होती है, वहां देवताओं का निवास हुआ करता है। जिस देश में हर एक व्यक्ति के लिए औरत अनुकरणीय, अभिनंदनीय, वंदनीय होनी चाहिए उसी देश में अगर उसका मानसिक, शारीरिक, भावनात्मक शोषण, दमन, उत्पीड़न होता है तो यह शर्मनाक है। देश वासियों के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है। नारी को भोग-विलास की वस्तु मानकर उन पर अत्याचार, बलात्कार जैसी घृणास्पद घटनाओं में वृद्धि होती जा रही है। बलात्कार जैसी ज्वलंत समस्या पर निर्माता, अभिनेता आमीर ख़ान के अपने टी वी कार्यक्रम ` सत्यमेव जयते ´ ( ४ मार्च, २०१४ ) में खुलकर, बेबाक बातें बताई गईं थी। कई पीड़ितों ने जब आपबीती सुनाई तो देखने वाले दर्शकों के दिल दहल उठे। सुनने वालों के दिमाग़ सुन्न हो गए। कई औरतों के आंसू रुक नहीं रहे थे। गैर मर्दों के अलावा जब कोई परीचित, रिश्तेदार भी ऐसी नीचता पर उतरे तो किस पर और क्यों विश्वास करें?
एक तरफ हम हिंदुस्तानी इक्कीसवीं सदी की ओर बढ़ने का दंभ भरते हैं, भारत देश को महाशक्ति बनाने के सपने संजोए बैठे हैं, दूसरी ओर अपनी नीचता, हैवानियत, शैतानियत का नंगा नाच दिखाकर देश की छवि धूमिल करने वालों की कमी नहीं। औरतों पर होने वाले अन्याय पर अपना रोष प्रकट करते हुए सुप्रसिद्ध लेखिका मैत्रेयी पुष्पा ने एक जगह कहा है, ” यदि आज बलात्कारियों को बधिया करने की सज़ा दी जाए तो वह सपने में भी हमला करने की बात सोचने से डरेगा। मगर भारत में ऐसी असरदार सज़ा लागू नहीं है, क्योंकि यहां पुरूष सत्ता प्रबल है। ” ऐसे ही क्रांतीकारी विचारों पर आधारित है निर्देशक अवतार भोगल की फ़िल्म जख़्मी औरत ( १९८८ )। फ़िल्म में दिखाया गया है कि महिला पोलिस इंसपेक्टर नायिका ( डिंपल कपाड़िया ) को अकेला पाकर कुछ अपराधी तत्व अपनी हवस का शिकार बनाते हैं। ऐसे भूखे भेड़ियों को सबक सिखाने नायिका उन पर केस करती हैं। लचर कानून व्यवस्था के चलते सभी आरोपी ` निर्दोष ´ छूट जाते हैं। प्रतिशोध की ज्वाला में धधकती नायिका अपनी डॉक्टर सहेली की मदद से सभी आरोपियों का `पुरूषत्व´ छीनकर, उन्हें कठोर दंड देती हैं।

बिहार के एक शहर में पड़ौसी द्वारा यौन शोषण की शिकार विधवा महिला ने वारदात के कुछ घंटों बाद, रणचंडी का रूप धारण कर लिया। अत्याचारी पर घासलेट छिड़कर आग के हवाले कर दिया। वो तड़फ़ – तड़फ़ कर जल मरा। उसी तरह उत्तर प्रदेश में एक युवती के साथ रेप करने वाले युवक को पीड़िता ने अपने घर बुलवाया। पीड़िता के साथ शादी करने के लिए उस पर दबाव डाला गया। मगर युवक ने साफ मना किया। गुस्साए घरवालों ने उसे मौत के घाट उतार दिया। इस तरह के ढेरों उदाहरण पेश किए जा सकते हैं।
माना कि बदले की भावना से प्रेरित होकर जुल्म का जवाब जुल्म से देना तर्कसंगत, न्यायसंगत नहीं है। ख़ुद ही गवाह,वकील और जज बनकर निर्णय लेना घातक है। लेकिन ऐसी बातों से अत्याचारियों तक कड़ा संदेश पहुंचता है कि औरत के अंदर की चिंगारी अब ज्वालामुखी बनकर उन्हें जलाकर राख कर सकती है। कोई भी बेटी, बहन, बहू, भाभी किसी भी गैर मर्द को अपना शरीर स्वेच्छा से छूने तक नहीं देती है। फिर ये कौन होते हैं उनके शरीर से खिलवाड़ करने वाले? औरत कोई मन बहलाने वाला खिलौना नहीं जिससे हर कोई खिलवाड़ करे।
पहले दिल्ली, फिर मुंबई, कोलकाता आदि शहरों में होने वाले गैंगरेप चिंताजनक, संतापजनक हैं। मानवता के मुंह पर कालिख़ पोतने वाली, समाज को शर्मसार करने वाली कमीनी हरकतें देखकर शैतान भी शर्माता होगा। क्या ये वही भारत देश है जहाँ लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा देवी आदि की पूजा की जाती है? विशेष अवसरों पर कुंवारी कन्याओं को उचित मान – सम्मान देकर उन्हें पूजा जाता है। ऐसी पवित्र भूमी पर दरिंदे कैसे पैदा होते हैं? कब समाधान निकालेगा इस जटिल समस्या का?
— अशोक वाधवाणी

अशोक वाधवाणी

पेशे से कारोबारी। शौकिया लेखन। लेखन की शुरूआत दैनिक ' नवभारत ‘ , मुंबई ( २००७ ) से। एक आलेख और कई लघुकथाएं प्रकाशित। दैनिक ‘ नवभारत टाइम्स ‘, मुंबई में दो व्यंग्य प्रकाशित। त्रैमासिक पत्रिका ‘ कथाबिंब ‘, मुंबई में दो लघुकथाएं प्रकाशित। दैनिक ‘ आज का आनंद ‘ , पुणे ( महाराष्ट्र ) और ‘ गर्दभराग ‘ ( उज्जैन, म. प्र. ) में कई व्यंग, तुकबंदी, पैरोड़ी प्रकाशित। दैनिक ‘ नवज्योति ‘ ( जयपुर, राजस्थान ) में दो लघुकथाएं प्रकाशित। दैनिक ‘ भास्कर ‘ के ‘ अहा! ज़िंदगी ‘ परिशिष्ट में संस्मरण और ‘ मधुरिमा ‘ में एक लघुकथा प्रकाशित। मासिक ‘ शुभ तारिका ‘, अम्बाला छावनी ( हरियाणा ) में व्यंग कहानी प्रकाशित। कोल्हापुर, महाराष्ट्र से प्रकाशित ‘ लोकमत समाचार ‘ में २००९ से २०१४ तक विभिन्न विधाओं में नियमित लेखन। मासिक ‘ सत्य की मशाल ‘, ( भोपाल, म. प्र. ) में चार लघुकथाएं प्रकाशित। जोधपुर, जयपुर, रायपुर, जबलपुर, नागपुर, दिल्ली शहरों से सिंधी समुदाय द्वारा प्रकाशित हिंदी पत्र – पत्रिकाओं में सतत लेखन। पता- ओम इमिटेशन ज्युलरी, सुरभि बार के सामने, निकट सिटी बस स्टैंड, पो : गांधी नगर – ४१६११९, जि : कोल्हापुर, महाराष्ट्र, मो : ९४२१२१६२८८, ईमेल ashok.wadhwani57@gmail.com