गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

भीड़ के हर सू रेले हैं
फिर भी लोग अकेले हैं

तन्हाई से डरना क्या
तन्हाई में मेले हैं

इंसा ने सुख की खातिर
कितने ही दुख झेले हैं

जंगल से ज़्यादा वहशी
बस्ती बस्ती फैले हैं

मिट्टी में मिल जाएंगे
सब मिट्टी के ढेले हैं

लाख पुराना दिल है पर
ग़म तो नए नवेले हैं

— नमिता राकेश