गीत/नवगीत

गीत

दिल पर रखकर हाथ कहो कवि
 क्या तुम सच में सच लिखते हो,
भीतर से भी क्या वैसे हो,
 जैसे बाहर से दिखते हो |
सच कहने का साहस शायद
अब तक   नहीं जुटा पाए हो|
छद्म प्रशंसा अनुशंसा में
खुद उलझे हो, उलझाए हो।
शब्द बृह्म शाश्वत होता है
उसे म्यान में क्यों रखते हो।
सत्य तुम्हें दिखता तो होगा,
उसे सत्य तुम कहना सीखो।
हुयी रक्तरंजित धरती हो,
मत सपनों में रहना सीखो।
माना तुम सुखांत कविता का ही
सद्भाव सृजन करते हो।
तुम्हें न भय हो अपमानों का
दरबारी सम्मान भुला दो।
कहो लेखनी से कुछ ऐसा
सिंहासन की चूल हिला दो।
पैनी रक्खो धार कलम की
उसे मोथरी क्यों करते हो।
आज लिखोगे तुम जो सच वो,
स्वर्णाक्षर में अंकित होगा।
ये विभोम स्वर युगों युगों तक
अंतरिक्ष में गुंजित होगा।
हैं विरोध में अभी हवायें
नाहक क्यों चिंतित रहते हो।
— डॉ. रश्मि कुलश्रेष्ठ

डॉ. रश्मि कुलश्रेष्ठ 'रश्मि'

पिता का नाम-स्व.देव प्रकाश कुलश्रेष्ठ माता का नाम-श्रीमती उर्मिला देवी जन्म स्थान-फिरोजाबाद शिक्षा-विज्ञान स्नातक, परास्नातक हिंदी विद्यावाचस्पति की मानद उपाधि विद्यासागर की मानद उपाधि साहित्यिक उपलब्धियां- ख्यातिलब्ध पत्र पत्रिकाओं में समय समय पर गीत गजलों आदि का प्रकाशन। रेडियो दूरदर्शन, ईटीवी उर्दू द्वारा काव्य पाठ , राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय मंचों पर काव्य पाठ मोबाइल नं-8953853333 व्हाट्सएप नं.-9453697029