गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

मानती हूँ इक ग़ज़ल है मुख़्तसर सी जिन्दगी,
बाबहर करनी है मुझको बेबहर सी जिन्दगी।
एक मुकम्मल ख्वाब की तामीर में मशगूल है,
तयशुदा लम्बे सफर में रहगुजर सी जिन्दगी।
चाँद की तिरछी कलम सी,चाँदनी में डूबकर
जाने क्या लिखती मिटाती राईटर सी जिन्दगी।
आँधियों तुम भूलकर भी देखना ना इस तरफ ,
तुमको छू-मंतर करेगी जादूगर सी जिन्दगी।
 माना सफर काँटों भरा पाँव के छाले न गिन,
ज़ख्म पर फाहे रखेगी चारागर सी जिन्दगी।
मैं कभी अपलक निहारूँ वार दूँ उस पर खुशी,
कितनी भोली है मेरी लख्ते-जिगर सी जिन्दगी।
अपनी ही धुन में मचलती चल रही अल्हड़ नदी,
साथ क्या -क्या ले चली है बेखबर सी जिन्दगी।
इस मकाँ को अर्श की ऊँचाईयों तक भेजकर,
छाँव में सुस्ता रही है कामगर सी जिन्दगी।
गुलमोहर की फुनगियों पर देखो कैसे खिल रही,
लग रही जाड़े की प्यारी, दोपहर सी जिन्दगी।
आचरण ही तय करेगा कैसे जीता है बशर,
जी रहा है आदमी भी जानवर सी जिन्दगी।
कच्ची मिट्टी के तरह हम चाक पर हैं घूमते,
क्या नया आकार देगी कूजागर सी जिन्दगी।
— डॉ. रश्मि कुलश्रेष्ठ

डॉ. रश्मि कुलश्रेष्ठ 'रश्मि'

पिता का नाम-स्व.देव प्रकाश कुलश्रेष्ठ माता का नाम-श्रीमती उर्मिला देवी जन्म स्थान-फिरोजाबाद शिक्षा-विज्ञान स्नातक, परास्नातक हिंदी विद्यावाचस्पति की मानद उपाधि विद्यासागर की मानद उपाधि साहित्यिक उपलब्धियां- ख्यातिलब्ध पत्र पत्रिकाओं में समय समय पर गीत गजलों आदि का प्रकाशन। रेडियो दूरदर्शन, ईटीवी उर्दू द्वारा काव्य पाठ , राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय मंचों पर काव्य पाठ मोबाइल नं-8953853333 व्हाट्सएप नं.-9453697029