कविता

मान पिता का प्यार 

पिता मिठाई तो मां रोटी की तरह होती है,
पिता के साथ हम मस्ती करते हैं मां डटकर सुधारती है।
पिता वृक्ष तो माॅ शीतल  छाया होती है,
पिता के बिना किसी का वजूद नहीं होता है।
पिता प्यार का सागर है तो मा उसकी की लहरें हैं,
मां पिता के बीच बच्चों का अस्तित्व कुछ नहीं है,
मां पिता का कर्ज कोई नहीं चुका सकता,
पिता वेद तो मां पूजा है,
पिता प्यार है तो मां आंचल का कोना है,
पिता मिठाई तो मां रोटी की तरह होती है।।
— गरिमा लखनवी

गरिमा लखनवी

दयानंद कन्या इंटर कालेज महानगर लखनऊ में कंप्यूटर शिक्षक शौक कवितायेँ और लेख लिखना मोबाइल नो. 9889989384