कविता

सूना आँगन

कल तक थे नन्हे अंकुर
 आज बने है वो परवाज़..
उड़ चले नील गगन में,
आलना सिसके पीछे बेआवाज़…
हवाएं दूर की लुभाती लगे,,
रोशनी आफताब की प्यारी लगे..
आसमाँ की ऊचाई छूने में भूल गये,,
जमीं से जुड़ा हर एहसास..
इंतजार मत करना तुम अगले हफ्ते देखूँगा..
नहीं आ पाउँगा मुश्किल है आज..
सूना आँगन,बूढ़ा पीपल,, साँझ की ड्योड़ी पर..
माँ बाप आज फिर तन्हा बैठे उदास..
— प्रियंका गहलौत

प्रियंका गहलौत

मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश Blog - https://www.facebook.com/मेरी-लेखनी-102723114960851/