कविता

आपदा

वाह वाह
आपदा में खूब मौके ढूंढ़ते हो
विपदा की इस घड़ी में भी
नफा नुकसान खोजते हो
अरे निर्लज्जों
अरे ओ जालिमों
अरे नहीं नहीं
तुम नर पिचाश हो
आदमी मर रहा है
तुम रुपया बना रहे हो
लाशों पे कैसे
रोटी सेंक लेते हो
सांसे अटक रही हैं
तुम दवा गैस सब से रुपया कमा रहे हो
लोगों की मजबूरियों को न भुनाओ
ऐसा न हो
धरा रह जाए यह सब रुपया
समय नहीं मजबूरी का फायदा उठाने का
यह समय है इंसानियत का धरम निभाने का
खोल दो अपने खजाने
आदमी की जिंदगी को बचाने में
लोग जीवित रहेंगे
तो अवसर भी मिलेंगे
रुपया बनाने के

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020