कविता

श्रम हमारा धर्म

श्रम को धर्म मानकर करते काम।
करते मजदूरी मजदूर हमारा नाम।।

मजदूरी करते सुबह शाम दोपहर ।
ताने भी खाते जैसे हो कड़वी जहर।।

जहर को भी पीकर हम चुप रह जाते।
करते हम मजदूरी अपना फर्ज निभाते।।

मजदूरी करना भी हमारी है मजबूरी।
न करे तो चूल्हे से रोटी बना ले दूरी।।

रोटी की खातिर बहाते हम पसीना।
रोटी न रहेगी तो मुश्किल हो जीना।।

अपनी सब दुःख पीड़ा सह मुस्कुराते ।
करते हम मजदूरी अपना फर्ज निभाते।।

— सोमेश देवांगन

सोमेश देवांगन

गोपीबन्द पारा पंडरिया जिला-कबीरधाम (छ.ग.) मो.न.-8962593570