श्रम हमारा धर्म
श्रम को धर्म मानकर करते काम।
करते मजदूरी मजदूर हमारा नाम।।
मजदूरी करते सुबह शाम दोपहर ।
ताने भी खाते जैसे हो कड़वी जहर।।
जहर को भी पीकर हम चुप रह जाते।
करते हम मजदूरी अपना फर्ज निभाते।।
मजदूरी करना भी हमारी है मजबूरी।
न करे तो चूल्हे से रोटी बना ले दूरी।।
रोटी की खातिर बहाते हम पसीना।
रोटी न रहेगी तो मुश्किल हो जीना।।
अपनी सब दुःख पीड़ा सह मुस्कुराते ।
करते हम मजदूरी अपना फर्ज निभाते।।
— सोमेश देवांगन