कविता

जप/सुमिरन

जप ,सुमिरन,पूजा पाठ
महज एक माध्यम है,
चित्त की शान्ति के लिए
सहज बहाना है।
अपने ईष्ट में रमने का
उसे याद करने का
खुद को संयमित, संयोजित
और छल प्रपंच से दूर रहने
कु्विचारों,कुकृत्यों से डरने
सात्विक, सरल, सुसंस्कृति के लिए
ये सब तो मात्र बहाना है।
गलत कामों से बचने का
स्वार्थ, लोभ से डरने का
सत् पथ पर चलने का
संवेदनशील होने के लिए
ईश्वर से डरने का भी,
जप ,तप ,सुमिरन ,भजन,कीर्तन
मंदिर, मस्जिद, गिरिजा
गुरुद्वारे में जाने का भी
ये सब एक बहाना है।
सबकी अपनी भावना है
सबके अपने तर्क भी हैं,
बस! उद्देश्य सबका एक ही है
अपने अपने मन में
ईश्वरीय सत्ता के प्रति
अपने भाव जगाने का,
जैसे जिसको समझ में आता
ईश्वर कृपा को पाने का।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921