कवितापद्य साहित्य

पुनर्जीवित 

मैं पुनर्जीवित होना चाहती हूँ
अपने मन का करना चाहती हूँ
छूटते संबंध टूटते रिश्ते
वापस पाना चाहती हूँ
वह सब जो निषेध रहा
अब करना चाहती हूँ
आख़िरी पड़ाव पर पहुँचने के लिए
अपने साये के साथ नहीं
आँख मूँद किसी हाथ को थाम
तेज़ी से चलना चाहती हूँ
शिथिल शिराओं में थका रक्त
दौड़ने की चाह रखता है
जीते-जीते कब जीने की चाह मिटी
हौसले ने कब दम तोड़ा
कब ज़िन्दगी से नाता टूटा
चुप्पी ओढ़ बदन को ढोती रही
एक अदृश्य कोने में रूह तड़पती रही
स्त्री हूँ, शुरू और अंत के बीच
कुछ पल जी लेना चाहती हूँ
कुछ देर को अमृत पीना चाहती हूँ
मैं फिर से जीना चाहती हूँ
मैं पुनर्जीवित होना चाहती हूँ।
– जेन्नी शबनम (9. 6. 2021)
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