कविता

योग और योग दिवस

आखिरकार
योग दिवस भी आ गया।
चलिए हम सब मिलकर
आज फिर दुनियां को दिखाते हैं,
योग दिवस की भी
औपचारिकता निभाते हैं।
सोशल मीडिया पर
बड़ी धूमधाम से मनाते हैं,
बधाइयां की औपचारिकता निभाते हैं,
योग करते हुए फोटो खिंचाते हैं
सोशल मीडिया में
खूब प्रचारित करते हैं,
सरकारी, सामाजिक संगठन भी
नेता,सांसद, विधायक, मंत्री भी तो
बस!एक ही दिन
योग करते पाये जाते हैं,
इतने ही भर से
मीडिया और समर्थकों में
बड़ा कवरेज़ जो पा जाते हैं।
दरअसल दिवस मनाना भी
मात्र छलावा है,
असली मकसद तो बस
आमजन को बेवकूफ बनाना है,
आखिर प्रचार भी तो
इसी तरह से पाना है।
हम भी तो कुछ कम नहीं हैं
हमें लगता है जैसे
हमारी सबको बड़ी फिक्र है,
पर सच्चाई यह है
किसी को किसी की नहीं पड़ी है।
अरे भाई सिर्फ़ हम ही नहीं
हम ,आप सब भी तो
मुगालते में लड्डू खा रहे हैं।
हमें तो अपनी कम
औरों की पड़ी है,
अब आपको भला कौन समझाये
हम योग करें, निरोग हो जायें
बहुत अच्छा है,
मगर आपने कभी सोचा भी है
हम सब बीमार ही नहीं होंगे तो
बड़े बड़े अस्पताल
दवाई दुकानदार और उनके कर्मचारी
सरकारी और गैर सरकारी डाक्टर
गली मोहल्लों में फैले
प्रशिक्षित, अप्रशिक्षित डाक्टर,
दवा की फैक्ट्री और
उसमें काम करने वाले लोगों
सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय
और उनमें जीविका पाये
लाखों लोगों ही नहीं और भी
परोक्ष, अपरोक्ष बहुतेरे लोगों के
घर के खर्च भला कैसे चल पायेंगे?
ऊपर से बड़ी समस्या यह भी तो है
अगले सालों में हम भला
योग और योग दिवस का
महत्व कैसे बता पायेंगे,
योग दिवस भी भला तब
इतने ही उत्साह से कैसे मनायेंगे?
आखिर तब हम योग दिवस की
औपचारिकता कैसे निभा पायेंगे?
करो योग, रहो निरोग
कैसे और किसको बतायेंगे?
तब क्या हम योग के महात्म्य का
उपहास नहीं उड़ायेंगे?

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921