कविता

मेरी अभिलाषा

मेरे मन की यह अभिलाषा
पूरी हो जन जन की आषा,
मिटे गरीबी और निराशा
संस्कार बन जाये परिभाषा।
सबको शिक्षा, इलाज मिले
अमीर गरीब का भाव हटे,
बेटा बेटी का अब भेद मिटे
मेरे मन की यह अभिलाषा।
गंदी राजनीति न हो
वादे सारे ही पूरे हो
जिम्मेदारी भी तय हो
अपनी भी जिम्मेदारी हो।
स्वच्छ रहें सब नदियां नाले
कहीं तनिक न प्रदूषण हो,
अतिक्रमण का नाम न हो
कानून व्यवस्था का राज हो।
त्वरित न्याय मिले सबको
मन में भेद तनिक न हो,
किसी बात का खौफ न हो
जग में खुशियाँ अपार हो।
मरने मारने का भाव न हो
सीमा पर भी न तनाव हो,
भाई चारा सारे संसार में हो
सबके मन में प्रेमभाव हो।
मँहगाई का वार न हो
प्रकृति मार कभी न हो,
चिंता की कोई बात न हो
मन मेंं कपट विचार न हो।
सामप्रदायिक दंगे न हों
जाति धर्म की बात न हो,
सब चाहें सबका हित हो
खुशियों का भंडार भरा हो।
सामाजिक कुरीति न हो
बहन बेटियों में न डर हो,
नशे का व्यापार न हो
मेरे मन की यह अभिलाषा।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921