सामाजिक

बुजुर्गों का सम्मान : क्यों और कैसे?

आधुनिकता की अंधी दौड़ ने हमें इस कदर अंधा कर दिया है कि हम अपने रीति रिवाज, तीज-त्योहारों, संस्कारों, परंम्पराओं का मजाक उड़ाते ही जा रहे हैं। इसी कड़ी में अब इस आधुनिकता के क्रूर राक्षस का हमला हमारे परिवार और रिश्तों पर भी प्रहार करने लगा है। दिखावे और स्वछंदता की बढ़ती प्रवृति ने हममें राक्षसत्व सरीखा भाव पैदा करने का कुचक्र  हावी होने का संकेत साफ दिख रहा है।
सच कहें तो इस विषय में कुछ भी कहना, सुनना भी किसी शर्मिंदगी से कम नहीं है।मगर हम सब तो शर्म को घोलकर पी चुके हैं और पूरे बेशर्म ही नहीं बेहया भी हो चुके हैं। हो सकता है कि कुछ लोग मेरी बातों का गलत अर्थ निकालने लगे हों,लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता है। माना कि आप अपने बुजुर्गों का बड़ा मान सम्मान करते हैं, मगर क्या अपने पड़ोसी द्वारा अपने बुजुर्गों की उपेक्षा और अपमानित करने वाली प्रवृत्तियों का आपने विरोध किया, रोकने की कोशिश की,शायद नहीं और ऐसा न करने की वजह भी है कि किसी और के पारिवारिक मामले में दखल उचित नहीं है।आप सही भी हैं मगर ये सामाजिकता नहीं है।सामाजिक प्राणी और  जिम्मेदार नागरिक के तौर पर ये आपका दायित्व भी है।मगर नहीं हम,आप, सब इस ओर से मुँह मोड़ें ही रहते हैं।
इसका भी कारण कि कुछ अपवादों को दरकिनार कर दें तो लगभग हर परिवार में बुजुर्गों की उपेक्षा फैशन सरीखा हो गया है।हम अपने बुजुर्गों को पड़ोसियों तक से मिलने तक नहीं देना चाहते, इसके लिए तर्क कम कुतर्क ज्यादा दिए जाते हैं।
बड़ा अफसोस होता है कि हमारे अपने ही भाई, भतीजे, बेटे कितनी. बेदर्दी दिखाते हैं, नाती, पोतों तक को पास नहीं आने देना चाहते। सबसे बड़ा अफसोस तो इस बात का है कि अपने ही बच्चों से उनके स्वाभाविक अधिकार सिर्फ़ बुजुर्गों से उपेक्षाओं के कारण छीन  रहें हैं। खुद अपने दादा, दादी, नाना, नानी आदि का प्यार, दुलार पाने के चक्कर में माँ बाप तक को भूले रहते थे, स्वच्छंद और स्वाभाविक बचपन जीते थे ,आज अपने ही औलादों से उनका स्वाभाविक बचपन छीन रहे हैं।
बुजुर्गों का सम्मान करने के बजाय उनकी उपेक्षा करने वाली हमारी आज की पीढ़ी ये भूल रही है कि उनके बच्चे भी आगे चलकर उन्हीं की राह पर चलने वाले हैं,तब उन्हें अपनी भूल का एहसास होगा, लेकिन तब वे उस बेबसी को खुद जी रहे होंगे,जिसे उनके बुजुर्गों ने अपने दौर में जिया होता है।
अपने बुजुर्गों का सम्मान क्यों और कैसे करना है? प्रश्न ये नहीं है,प्रश्न ये है कि हमें बुजुर्ग होने पर बच्चों से क्या और कैसा प्यार,सम्मान ,अपनापन पाना है। इस पर स्वमेव चिंतन करने की जरुरत है।बस तब न तो बुजुर्गों की उपेक्षा होगी और न ही उनके सम्मान में कमी। सोचना और फैसला आपको ही और बिना देर किए ही करना है अन्यथा बहुत देर हो चुका होगा और आपके हाथों के तोते उड़ चुके होंगे।

*सुधीर श्रीवास्तव

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