कविता

बदलते ही आप के

बदलते ही आप के – बदल गैए तौर त़रीके भी ज़िनदगी के
रहे ना हम ज़मीन के – ना ही रहे इस ज़माने के
रहे नही आप भी हमारे – ना ही ख़ुदा भी हमारे नसीब में
रखा फिर भी हमेशा हम ने- क़रीब आप को हमारे दिल के
रूह और ज़िनदगी में हमारी आप – बस चुके हैं इस क़दर
मोहबबत हमारी अब तो रहे गी – सादक़आप के लिये हमेशा ही
दवा हमारे दिल के दर्द की – नही है किसी और के पास
हज़ारों कोशिशों के बाद भी – ठीक नही हुए ज़ख़म हमारे दिल के
क़दम रखते ही राहे वफ़ा – ग़म हज़ारों मिले हमारे दिल को
उलझी ही रही ज़िनदगी हमारी – ज़माने की उलझनों में
खेल यिह सारा है नसीबों का – ख़ता इस मे किसी की नही
वफ़ा फिर भी आप से जुदा – नही है हमारे दिल से
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वजा की कोई ज़रूरत नही है – ख़ुशी को पाने के लिये — मदन —
बुहत क़ीमत चुकाई है – लोगों ने मोहब्बत को पाने के लिये
हसती मिटा दी हम ने भी – वफ़ा फिर भी हम को मिली ही नही
आदत फिर भी बन गैई है हमारी – हमारे नादान दिल को लगाने की

मदन लाल

Cdr. Madan Lal Sehmbi NM. VSM. IN (Retd) I retired from INDIAN NAVY in year 1983 after 32 years as COMMANDER. I have not learned HINDI in school. During the years I learned on my own and polished in last 18 months on my own without ant help when demand to write in HINDI grew from from my readers. Earlier I used to write in Romanised English , I therefore make mistakes which I am correcting on daily basis.. Similarly Computor I have learned all by my self. 10 years back when I finally quit ENGINEERING I was a very good Engineer. I I purchased A laptop & started making blunders and so on. Today I know what I know. I have been now writing in HINDI from SEPTEMBER 2019 on every day on FACEBOOK with repitition I write in URDU in my note books Four note books full C 403, Siddhi Apts. Vasant Nagari 2, Vasai (E) 401208 Contact no. +919890132570