कविता

राखी की पुकार

एक बार फिर आया है
रक्षा बंधन का त्यौहार
आगे भी आता रहेगा
यह दिन बार बार
 एक बार फिर
  राखी खरीदी जाएगी
और बड़े प्यार से
 भाई की कलाई पर
बहन उसे सजाएगी
चाहेगी वादा बहन भाई से
    अपने हिफाजत की
मगर क्या भाई दिल से
  कर पाएगा वादा
बहन के हिफाजत की ??
चंद कागज के टुकड़े देकर वह
अपना वादा निभाएगा
शान से बंधवा कर राखी
अपनी कलाई पर वह
 एक रस्म ही तो निभाएगा
कल से फिर शुरू हो जाएंगी
       रोजमर्रा की बातें
बहनों के सतीत्व हरण की
 घिनौनी वारदातें
ये कौन होते हैं नराधम ?
क्या ये किसी के भाई नहीं ?
क्या इन्होंने अपनी कलाई
   राखी से
कभी सजाई नहीं ?
 क्यों ये भूल जाते हैं कि
हर लड़की किसी की बेटी
किसी की बहन है ?
इनसे ही तो गुलजार है
  सबके घर का आँगन,
 इनसे ही महकता सबका
            चमन है
क्यों नजर नहीं आती
         इन बहनों में
       इनको अपनी बहना ?
आखिर ये भी होती हैं
किसी घर की आन, बान,
            शान और गहना
इन्हीं नराधमों की वजह से
माँ बाप हो जाते हैं मजबूर
कोख में ही मार देते
         बेटियों को
कर देते हैं जिंदगी से दूर
एक एक कर सुमन अगर
यूँ ही तोड़े मसले जाएँगे
फूलों से महकते उपवन
वीरानों में बदलते जाएँगे
बंजर वसुधा सी विरानी
किसको भाएगी ?
सोचो क्या होगा आँगन में
अगर बेटी नहीं खिलखिलायेगी
देकर चंद कागज के टुकड़े
मत समझो अपना कर्तव्य
कर लिया है पूरा
नारी के बिना सृष्टि का
हर चक्र रह जाएगा अधूरा
अब भी वक्त है
वादा कर लो खुद से
हर एक बहन को
       अपनी बहन मानोगे
 ले लो यह संकल्प आज
वादा जो किया है उसे
दिल से निभाओगे
अब नहीं कोई निर्भया
खबरों में आएगी
नहीं कोई गुड़िया
आधी रात जलाई जाएगी
हर एक बहन स्वच्छन्द विचरेगी
हँसेगी, खिलखिलायेगी
शान से जग में देश राज्य और
 परिवार का मान बढ़ाएगी
कभी न कभी तो वह दिन भी आएगा
जब पूरे होंगे ये अरमान
उसी दिन गर्व से कह सकेंगे हम
मेरा भारत महान ! मेरा भारत महान !!

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।