श्रृंगार
श्रृंगार तो किया है मैंने
पर झुमके मेरे है खफा
उनकी तारीफ में कुछ नहीं
अभी तक किसी ने कहा
हुआ ऐसा पहली दफा
इन चूड़ियों की खनक
नहीं पहुंची तुम तक
अब तो आ ही जाओ
राह निहारूं अपलक
मेहंदी भी रखी है सजा
ढूंढना अपना नाम फिर कहना
रंग कितना गहरा चढ़ा
तुम तो फिर यही कहोगे रंग देखकर
यह है तुम्हारे प्यार का असर
और सात जन्मों की तुम मेरी हमसफर
हर तीज के तुम आते थे पहले
मेरी मेरी मेहंदी का रंग
तुम से पहले कोई ना देख ले
तुम जैसा चाहते थे वैसा ही किया है
मैंने शादी वाली चुनरी सर पर रखा है
हमने षोडशो सिंगार किया
नहीं आए अब तक तुम पिया
अश्रु से बहने लगे अंजन
तुम बिन मैं कुछ नहीं साजन
कैसे जियेगी तुम बिन
तेरी यह बिरहन
अब आ भी जाओ
बुला रही है मेरे कंगन.
— सविता सिंह मीरा