कविता

उम्मीद

उम्मीद
———-
उम्मीद पर टिकी है दुनिया
लोग कहते हैं
लोगों का क्या कहना
ये तो बस कहते रहते हैं…
जब अपने दे जाएं जख्म
तो उम्मीद किससे करें
यही हाल रहा तो क्यों न
परछाइयों से डरें
जख्मों ने दिया जो दर्द
तो आँसू बहते रहते हैं
लोगों का क्या कहना
ये तो बस कहते रहते हैं ….
तिनका तिनका जोड़ कर
बनाया उम्मीदों का एक घर
अंधेरों ने साथ ना छोड़ा
कभी आई नहीं सहर
भूल गया था कि जिंदगी में
जलजले आते रहते हैं
लोगों का क्या कहना
ये तो बस कहते रहते हैं …
निराश हूँ मैं तेरी इस गद्दारी से
पर अभी मैं खत्म नहीं हुआ
हताश, टूटे दिल से मेरे
तेरे लिए निकलती है आज भी दुआ
टूटा हूँ, थका नहीं
चूका हूँ पर रुका नहीं
उम्मीद की डगर पर पग
ये बढ़ते रहते हैं
लोगों का क्या कहना
ये तो बस कहते रहते हैं….

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।