धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

प्राचीन धरोहर “देवरा महादेव

मध्यप्रदेश में धार जिले के मनावर तहसील में अवलदा से आगे देवरा नामक गांव में एक अत्यंत प्राचीन शिव मंदिर विद्यमान है, जिसका इतिहास 10-11वीं शताब्दी का माना गया है। यह मंदिर राजा यशोवर्मन द्वारा निर्मित बताया जाता है, यशोवर्मन परमार वंश के राजा हुए जिस परमार वंश ने कई दशकों तक मांडव व मालवा पर राज्य किया। उस समय भी मांडव एक दर्शनीय स्थल के रूप में विकसित किया गया था, जहां शिकार, विश्राम व प्राकृतिक आनंद के लिए राजा महाराजा आया करते थे। देवरा स्थित महादेव मंदिर की भौगोलिक स्थिति की चर्चा करें तो हम देखेंगे कि यह मंदिर एक छोटी सी धारा के पास स्थित है, यह धारा मानव निर्मित है अर्थात इस मंदिर की विशेषता इस बात से सिद्ध होती है कि मंदिर व आस-पास की बसाहट के जीवन यापन हेतु इस जलधारा को निर्मित किया गया, क्योंकि हम यह जानते हैं की सनातन धर्म में मंदिरों के निर्माण में उनकी भौगोलिक स्थिति का बहुत अधिक महत्व होता है। कोई भी विशेष मंदिर ज्योतिर्लिंग शक्तिपीठ आदि उस स्थान के विशेष महत्व को बताते हैं इसी प्रकार देवरा स्थित महादेव मंदिर भी एक विशेष महत्व के कारण उस स्थान पर बनाया गया। शिव मंदिरों में प्रतिमा नहीं होती शिव के प्रतीक के रूप में शिवलिंग की स्थापना होती है साथ ही शिव परिवार अर्थात पार्वती गणेश विष्णु नंदी आदि मंदिर के परकोटे में विराजित किए जाते हैं देवरा महादेव में भी हमें शिव परिवार दिखाई पड़ता है इसके साथ ही इसके आसपास कई स्थानों पर सती माता के मंदिर स्थित है जो कि पूर्व में सती हुई महिलाओं के देवस्थान के रूप में पूजनीय है आज भी स्थानीय जनजाति व सामान्य समाज के मन में इन स्थानों के लिए बहुत आस्था है।
देवरा महादेव में जो शिव लिंग है वह सेंड स्टोन अर्थात बलुआ पत्थर का बना हुआ है, जो आस पास के ही कुक्षी ग्रामीण या मांडव क्षेत्र से लाकर स्थापित किया गया। इसके निर्माण में उपयोग किए गए पत्थर इसी क्षेत्र के है, तथा इस मंदिर के निर्माण में जो प्लान दिखाई देता है, वह विशेष कर भारत के 2 ही मंदिरों में देखने को मिलता है एक भोपाल के पास भोजपुर स्थित शिव मंदिर व दूसरा यहां देवरा स्थित महादेव मंदिर में दिखाई पड़ता है। जीवाश्म वैज्ञानिक व इतिहास के जानकार व जीवाश्म विशेषज्ञ प्रो. विशाल जी वर्मा ने बताया कि यह मंदिर जिस प्रकार बना इससे यह स्पष्ट होता है कि मंदिर को जमीन के स्तर से ऊपर उठाकर बनाया गया। क्योंकि शिव मंदिर में लिंग का संबन्ध या तो पाताल से होता है या फिर नींव को बहुत अधिक ऊंचाई देकर ही शिव लिंग की स्थापना की जाती है। देवरा महादेव मंदिर में इस बात का ध्यान रखा गया है, साथ ही वास्तु अनुरूप इसमें दिव्य कलश भी स्थापित किए गए।
इस मंदिर में मुख्य द्वार पर द्वारपाल विराजमान है, यह द्वारपालों का बड़ा समुच्चय है जो सभी देवताओं को इंगित करता है, साथ ही मुख्य द्वार के ऊपर हनुमान, गणेश, विष्णु व दो देवियों को स्थापित किया गया है, इतना ही नही यहां पशुओं को भी स्थान मिला है, यह हमारी शिल्प कला का एक अद्वितीय उदाहरण है, मंदिर के प्लान से यह स्पष्ट होता है कि मंदिर के चबूतरे के ऊपर भी कोई प्रतिमा या स्थान होगा जो मुस्लिम आक्रान्ताओं द्वारा ध्वस्त कर दिया गया। मंदिर के बहुत से हिस्से आज भी इसके आस पास एक परकोटे के रूप में दिखाई देते है। नंदी, देवियों, अन्य मूर्तियों को भी मुस्लिम आक्रमणकारियों ने क्षतविक्षत किया है।
आज वर्तमान में देवरा महादेव मंदिर जर्जर अवस्था में है, एक एक करके पाषाण शिलाएं गिर रही है, मंदिर का चबूतरा ऊपर से खुल चुका है, अत्यंत आवश्यक है आज देवरा महादेव जैसे अति प्राचीन धरोहरों के रक्षण व पुनर्निर्माण की। क्योंकि यही हमारे  गौरवशाली इतिहास का प्रमाण है।
(आलेख में देवरा महादेव का वर्तमान चित्र संलग्न है)
— मंगलेश सोनी

*मंगलेश सोनी

युवा लेखक व स्वतंत्र टिप्पणीकार मनावर जिला धार, मध्यप्रदेश