कविता

बेटियां अवतार लक्ष्मी का

लक्ष्मी जी के दर्शन पाकर,अन्तर्आत्मा हर्षायी

एक नन्ही सी परी स्वर्ग से, सीधी मेरे घर आई।

छोटे-छोटे हाथ देखकर, खुशी हुई मन में भारी
नन्हें पैरों को फटकाकर, उसने किलकारी मारी।
दुग्धपान में यदि बिलम्ब हो,अंगूठा मुख में रखती
चित्त नहीं रुकता उसका, वक्त वक्त क्रंदन करती।
फिर धीरे धीरे घुटनों के बल,चली मेरी गुड़िया रानी
मन बगिया खिल गया देख,उसकी सारी कारिस्तानी।
मेरी लाडो एकदिन मुझको,सहसा ही पापा बोल पड़ी
देख हुआ प्रफुल्लित मन,जब वो मुसकाई खड़ी खड़ी।
उंगली पकड़ पकड़कर उठती,और कभी नीचे गिर जाना
याद रहेगा आजीवन भर , पकड़ पकड़कर उसे चलाना।
बेटा जीवन भर पास रहे, बेटियां पराये घर जातीं
पर विपत्ति और संकट में, सबसे पहले बेटी आती।
बेटी दुर्गा, बेटी शक्ति, और बेटी लक्ष्मीबाई है
बड़े भाग्यशाली नर हैं, जिनके घर बेटी आई है।
बेटी सोना २४ कैरेट, कोई लोहे का आकार नहीं
प्रदीप बेटियां आभूषण,बेटियां किसी पर भार नहीं।

प्रदीप शर्मा

आगरा, उत्तर प्रदेश