कविता

फर्क

फर्क कोई वस्तु नहीं
बस महसूस करने का भाव है,
फर्क नजरिए का भी होता है
तो कभी हमारे तरीक़े में
हम जिस नजरिए से देखते हैं
फर्क हमें दिखता है।
सबका अपना अंदाज है
सबको फर्क दिखता है
किसी को कम किसी को ज्यादा
बस यही फर्क ही हर किसी में
फर्क का फर्क बताता है।

*सुधीर श्रीवास्तव

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