सामाजिक

नूर की बूँद है सदियों से बहा करती है

“प्रेम वो खजाना है जिसे मिल जाए उसकी ज़िस्त जन्नत से कम नहीं होती, प्रेम की सही पहचान हो जाए तो प्रेम जैसी नायाब दुनिया में और कोई चीज़ नहीं होती”
प्यार कोई बोल नहीं, प्यार आवाज़ नहीं
एक खामोशी है सुनती है कहा करती है,
ना ये बुझती है ना रुकती है ना ठहरी है कहीं, नूर की बूँद है सदियों से बहा करती है सिर्फ़ एहसास है ये, रूह से महसूस करो।
प्रेम वैसे तो अपने आप में एक अद्भुत अनुभूति है, हम कहते भी है की प्रेम में समर्पित भाव प्रेम की चरम है। अपेक्षा नहीं सिर्फ़ देने का नाम प्रेम है। ये सारी बातें कहने सुनने में बहुत अच्छी लगती है पर वास्तविकता कुछ और ही होती है। बेशक दो व्यक्ति जब प्यार में होते है तब शुरुआती दौर स्वर्ग से सुंदर होता है। एक-दूसरे की परवाह में फ़ना हो जाने का मन होता है। आहिस्ता-आहिस्ता जैसे हर चीज़ में तुष्टिगुण का नियम लागू होता है वैसे प्रेम के ऑवर डोज़ का डकार आते ही प्रेम परिस्थितियों के अधीन व्यवहार करने लगता है। let go की भावना पर आधारित प्रेम डावाँडोल होता रहता है। कुछ लोग बिना गलती के भी माफ़ी मांग लेते है, अपने साथी को कितना मनाते है, सहलाते है ये सोचकर की अपना रूठ न जाए उदास और दु:खी न हो जाए।
पर मनाने की भी एक हद होती है कभी-कभी ऐसा वक्त भी आ जाता है की, “मेरा एक ख़्वाब है तुमको अब भूल जाऊँ ज़िस्त कट गई तुमको मनाते-मनाते, सोच रहा हूँ अब खुद रूठ जाऊँ” प्यार कभी एक गति में बहते मिश्री सा मीठा नहीं रहता कभी top of the world होता है तो कभी शेयर बाजार की तरह down कभी उन्माद तो कभी अधिरता होती है। कभी मन करता है साथी पर फ़िदा हो जाए कभी रिश्ता तोड़ने को मन करता है।
चाहत जब सराबोर होती है तो लगता है यही तो मेरे जीने की वजह है, ये नहीं होता तो मेरा क्या होता, तो कभी अनबन पर मन कहता है जीना मुहाल कर दिया है कमबख़्त ने ये जीवन में न होता तो अच्छा होता।
प्यार गहरे समुन्दर सा अगाध है, समझने की कोशिश में छूट जाता है। पर नि:स्वार्थ किसी अपेक्षा के बस प्रेम करते जाएंगे तो प्रेम एक इतना हसीन अहसास है की प्रेम में जीते-जीते जीवन कम पड़ जाए। दो इंसानों की केमेस्ट्री जब मिलती है तब जीवन रुपी आसमान में खुशियों का इन्द्रधनुष रच देते है। कायनात का हर ज़र्रा रोशनी और रंगत से भरा लगता है पेड़ पर कुरेदते एक दूसरे के नाम लैला मजनूँ से परिभाषित होते है।
जब महबूब की आँखों में ताज़िंदगी डूबे रहने का मन करे तब समझ लीजिए आपने प्रम को आत्मसात किया है। पर एक गलती या नाराज़गी पर जिंदगी जहन्नुम लगे तो आपने प्रेम किया ही नहीं। पर इंसान की फ़ितरत है पूरी ज़िंदगी प्रेम के सहारे नहीं काट सकता। जिनके लिए छोटी सी बात पर प्रेम के मायने बदल जाते हो, ऐसे क्षणिक आवेग को प्रेम समझने वालों को प्रेम कभी समझमें नहीं आएगा। हारना और  झुकना प्रेम की पहली शर्त होती है, जो बहुत कम लोगों में ये हुनर होता है।
उसे मेरी परवाह नहीं तो मैं क्यूँ मनाऊं, यही अहं रिश्ते का खून कर देता है। प्रेम में कुछ चीज़ें बहुत मायने रखती है जैसे धैर्य, भरोसा, चाहत और समर्पण और इसी गुणों की कमी होती है इंसान में तो प्रेम की परिभाषा कैसे समझ में आएगी। कैसे मन भर सकता है प्रेम जैसे स्पंदनों से। प्रेम का ड़कार नहीं लेना चाहिए, प्यार सब्र को आज़माता है। हर परिस्थिति में बिना विचलित होए अविरत पीते जाना है, करते जाना है किसी भी हाल में साथी का साथ देते तभी प्रेम का झिलमिलाता पहलू महसूस होगा।
— भावना ठाकर ‘भावु’

*भावना ठाकर

बेंगलोर