सामाजिक

आजादी की निश्चित सीमा जरूरी

विवाह तय होने के बाद शादी पूर्व तक लड़के लड़कियों की आजादी की निश्चित सीमा इसलिए भी जरूरी है कि समय के बदलाव की बयार में ठहरना खतरनाक होता है ,परंतु उड़ना बहुत खतरनाक।
आज के बदलते परिवेश में जब शिक्षा का स्तर बढ़़त ले रहा है। सोशल मीडिया की जरुरत और उपयोग प्रभावी होती जा रहा है। ऐसे में जिन लड़के लड़कियों की शादियां तय हो चुकी हैं, उनमें बातचीत, मिलना जुलना, घूमना कोई असामान्य बात नहीं है। समय के साथ ये जरूरी भी है और आज के माहौल को देखते हुए मजबूरी भी।
परंतु हर चीज की एक सीमा होती है, सीमा से बाहर हर चीज समस्याओं को जन्म देती है।
कुछ ऐसा ही इन होने वाले नव दंपतियों को लेकर भी है। आज के.इस भागमभाग भरी जिंदगी में अनिश्चितता का वातावरण हर क्षेत्र में बना रहता है।
ऐसे लड़के लड़कियों को भी एक सीमा के भीतर रहकर बातचीत करनी चाहिए। शादी एक संस्कार है जिसका महत्व भी बना रहना चाहिए। शादी पूर्व इतना भी घुलना मिलना अच्छा नहीं कि शादीशुदा जीवन का शुभारंभ ही नीरसता के साथ हो। सीमा से बाहर जाकर मिलना, जुलना, घूमना और पति पत्नी सा व्यवहार खतरनाक है। क्योंकि अभी पति पत्नी बने नहीं हैं, बनेंगे।ऐसे में इस समय के बीच का अंतर कहाँ ठहरेगा या कैसी परिस्थिति पैदा करेगा कोई नहीं जानता।बहुत बार परिस्थितियों वश रिश्ते टूट भी जाते हैं। जिसके अनेक कारण हो सकते है।बहुत बार ऐसे जोड़े भावावेश और अब तो हम दोनों एक ही है की भावना के वशीभूत हो लक्ष्मण रेखा भी पार कर जाते हैं।जिसका रिश्तों पर दुष्प्रभाव भी पड़ता है।नव दाम्पत्य का शुभारंभ महज औपचारिक रह जाता है। न खुशी, न रोमांच और न ही समर्पण। बस मात्र औपचारिकता। साथ ही यदि किन्हीं कारणों वश रिश्ता टूटता है।तो लड़की के पास कुछ बचता नहीं, सब कुछ बिखरा बिखरा सा लगता है।पछतावा करने के सिवा उसके पास कुछ बचता नहीं है।जिसकी जद में उसके माँ बाप परिवार भी आ जाते हैं।
अतः मेरा मत है कि सीमा से अधिक खुला पन और आजादी खतरनाक तो है ही, साथ ही ऐसे दम्पतियों का वैवाहिक जीवन भी प्रभावित होता है।एक दूसरे को समझने की भावना और रिश्तों की गरिमा का अहसास भी कम होता जाता है, और तब बहुत से ऐसे जोड़ो के रास्ते अलग होने देर भीनहीं लगती।
इसलिए होंगे और हो गये के बीच में निश्चित मर्यादा की लक्ष्मण रेखा आवश्यक नहीं अनिवार्य है। वरना…….. अप्रत्याशित परिणाम के लिए ऐसे जोड़ों ही नहीं उनके परिवारों को भी तैयार रहना चाहिए।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

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