कविता

जीवन का रंग

पतंग सा है जीवन का रंग
डोर से बँधी है जिनका उमंग
चाह कर भी उड़ ना पाये
सीमा में घुट घुट कर रह जाये

जीवन मरण है डोर से बँधा
पतंग जैसे धागे से है बँधा
विधाता के हाथ डोर पड़ा है
नसीब कब साथ खड़ा है

मांझ से धागा कट जाना है
अर्श से फर्श पर गिर जाना है
नील गगन में उड़ने की चाह
धागा ने तय कर दी सीमा हाय

आसमां को जब छूना चाहा
पड़ोस की डोर से कट गिर आया
ईष्या द्वेष से जीवन भरा पड़ा है
अशांति चारों ओर अब खड़ा है

आजू बाजू गलत करते हैं इरादा
समझ ना पाये इनकी झुठी वादा
छूना जब चाहा मैंने वो आकाश
कटी पतंग बन गई मेरी आश

काश ! गगन को मैं छु पाता
सुख दुःख बादलों को सुनाता
आशमान से बाते कर    आता
मन गम से हल्का हो जाता

भाग्य जीवन का बाँधा है डोर
मतलब से होता है अब शोर
रिश्ते नाते। सब है भूल भूलैया
जीवन कटी पतंग है मेरे भइया

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088