कविता

अहसास 

गुजर रहा है समय पल पल
आ रहा है कोई दल बल ..
क्या है यहाँ शाश्वत भला
देखा है कभी आने वाला कल
किस बात का करें हम गुमान
क्या पहले से है कोई अनुमान
चाहत सब को आत्म सम्मान की
तो आओ हम बात करें ईमान की
न कुछ तेरा और न कुछ मेरा यहाँ
खाली हाथ छोड़कर जाना है वहाँ
याद है तुम्हें शून्य यह सारा जहां
सूरज ढलते ही अंधेरा ही अंधेरा
जुगनू की रोशनी ही है काफी
हमें सीधा राह दिखाने के लिए
जिंदगी के अद्भुत खेल में भागमभाग
फुर्सत नहीं है दो पल जीने के लिए
बुझ रहे हैं तो जलते हुए दिए ….
करीब आकर देखो बुला रहा कोई
समय की धारा में बह जा रहा है कोई
अहसास करवा रहे स्मृतियों के पुष्प
आज और कल के चक्रव्यूह में फंसकर
भी जीना चाहता हूँ मरने के बाद
— वीरेन्द्र शर्मा वात्स्यायन 

वीरेन्द्र शर्मा वात्स्यायन

धर्मकोट जिला (मोगा) पंजाब मो. 94172 80333